Tuesday, 15 March 2016

कौन हो तुम?

कौन हो तुम? कुछ तो बोलो ना! राज जरा सा खोलो ना!

किसी कलाकार की कल्पनाओं का वजूद हो तुम,
या किसी गीतकार की गजलों भरी रचना का रूप
सायों में जो ढ़लती रही देर तलक तुम हो वही धूप,
चाहतों की सुबह हो या तबस्सुम लिए शाम हो तुम।

कौन हो तुम? कुछ तो बोलो ना! राज जरा सा खोलो ना!

तुम कल्पना हो किसी शिल्पकार के शिल्पकला की,
इक अद्वितीय संरचना हो शिल्पकला के विधाओं की,
तराशा हुआ संगमरमर हो शिल्पी के कुशल हाथों की,
या धरोहर अनमोल हो तुम शिल्पकृत्य के बाजीगरी की।

कौन हो तुम? कुछ तो बोलो ना! राज जरा सा खोलो ना!

तुम मोहक तस्वीर हो किसी चित्रकार के खयालों की,
चटक तावीर हो रंगों मे रंगी किसी मोहिनी मनमूरत की,
अनदेखा सा सपना हो तुम चित्रकार के कल्पनाओं की,
या चित्रकारिता बेमिसाल हो तुम कुदरत के कारीगरी की।

कौन हो तुम? कुछ तो बोलो ना! राज जरा सा खोलो ना!

Monday, 14 March 2016

अभी अभी, कभी कभी

कह गए क्या तुम मुझे कुछ अभी अभी,
महसूस सी हो रही स्वर तुम्हारी दबी दबी,
कह न पाए जो जुबाने बात कोई कभी कभी,
बात ऐसी कह दी मुझको शायद तूने अभी अभी।

अभी अभी तो जल रही थी आग सी,
दबी दबी सी सुलग रही मन की ताप भी,
कभी कभी तो ऐसे मे लगे हैं जाते दाग भी,
अभी अभी तो बारिशों के होने लगे आसार भी।

निखर गए है कलियों के मुखरे अभी अभी,
जल उठे हैं दीप झिलमिल दिल में कोई दबी दबी,
होता अक्सर प्यार में क्या सिलसिला ये कभी कभी,
दरमियाँ दिलों के फासले थे कमने लगे है अभी अभी।

मेरे पूर्वज

मेरे पूर्वज,
कहां चले गए तुम,
किस धुंध में खो गए तुम,
सुर वीणा के तार छेड़कर,
एक नई पीढ़ी की नींव रखकर,
कहीं अनंत में गुम हो गए तुम....

मेरे पूर्वज,
संवेदनाओं के स्वर जगाकर,
मुझसे आत्मीय संबंध बनाकर,
एक संसार नई बसाकर,
जग से मुंह फेर गए तुम,,,,
कहां चले गए तुम.....

मेरे पूर्वज,
छोड़ गए तुम पीछे मुझको,
पर तुम इतना समझ लेना,
तुम्हारे द्वारा स्थापित मानदंडों को,
पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजुंगा मैं,
तुम्हारी संवेदनाओं की थाथी,
रखूंगा मन के कोने में ही कहीं....

मेरे पूर्वज,
सतत इन अविरल आंखों मे,
बसी रहेगी तस्वीर आपकी,
मेरी भावनाओं के दरम्याओं में
जीवनपर्यंत जीवन सार बनकर,
सिर्फ बसे रहोगे तुम,,,,,,,,
और सदा ही बसे रहोगे तुम........,,,,

ओ मेरे पूर्वज......नमन स्वीकारो तुम....

खालीपन का प्रेम

कभी कभी एक अनचाहा सा खालीपन .........

और ऐसे में कभी कभी,
कुछ लम्हे ज़िन्दगी के,
सुकून से बिताने को मन करता है ,,,,
और कभी कुछ पाने, कुछ खोने,
किसी को अपना बनाने,
या ऐसे मे किसी के होने का मन करता है .....,

इन लम्हों में बस एक साथी है मेरा....
जो हर पल हर समय साथ होता है मेरे,
मेरे सुख और मेरे दुःख की वेला में,
मेरे जीवन में रंग भरने का काम करता है,
वो है मेरी डायरी "जीवन कलश"
और उसका नि:स्वार्थ आजीवन प्रेमी 'कलम " ......

थिरकता है वो लम्हा जब,
दोनो एक दुसरे से मिल जाते है,
और बिछड़ने का नाम ही नहीं लेते है....,,,,
कोई मेरा साथ दे या न दे....
मेरा कोई हमदम हो या न हो,
ये आकण्ठ भर देते हैं मेरे खालीपन को.....

लगता है जैसे.....
सब कुछ मिल चुका है मुझे,,,,,,
मेरी हमदम मेरी आगोश मे है,
गुदगुदा रही है ये जैसे मेरी मानस को,
मेरी एहसासों को सुरखाब के पर लग जाते हैं तब......

मुझे रोक लेना मेरे वश में नहीं

तुम ही तुम हर पल एहसास सी,
ज़िक्र क्यों हर पल तेरा मेरी यादों में,
आसान नहीं ये समझ पाना,
मान लो तुम इसे खुदा कि मर्जी,
मेरी यादों को रोक लेना मेरे वश में नहीं।

तूम इक एहसास सी बनकर मुझमें,
फुरक़त-ए-एहसास अनोखी तेरी बातों में,
बंधन के वे स्वर भूल जाना मुमकिन नहीं,
रोक लूं खुद को मैं कैसे तुम्हें चाहने से,
मेरी चाहत को रोक लेना मेरे वश में नहीं ।

इसे इत्तफ़ाक़ कहो या फिर मेरी नादानी.....

बड़े बेनूर से पड़े थे मेरे एहसास,
रौनक ए एहसास आपके आने से आई,
खोया हूँ उस तसव्वुर-ए-मदहोशी में,
मुमकिन नहीं अब होश में आना,
हाँ ....! हाँ, कतई मुमकिन नहीं......!
मेरी मदहोशी को रोक लेना मेरे वश में नहीं । 

एहसास गुमनाम गुम हुए

कुछ कण......!
क्षितिज पर अव्यवस्थित...!
क्या ताज्जुब हो,
गर वो रौशनी में गुम हुए.........!
वो रात सपनों का आना, भोर में उनका खो जाना,
बस कुछ रात्रि स्वप्न सुर रह गए,
जो प्रात दिवा में गुम हुए.........!

कुछ शब्द......!
एहसासों पर अव्यवस्थित...!
न कोई दहशत,
न खुद के खोने का डर........!
कुछ बुझें संवाद, कुछ अनकहे संबोधन,
कोई ग्रन्थ कोई संग्रह नहीं,
क्या हुआ गर गुम हुए.........!

कुछ चाहत......!
कभी चित्कार,कहकहे,क्रंदन,
सब यहीं कहीं हवा में घुल कर,
सांसों में गुम हुए........!
ओस के चंद कतरें ...
मिल बूंद बने, फिर गुम हुए़़......!
खुद जलकर ....
रोशनी को जलाने का अहसास,
बूझकर आँधी में,
धधककर जलने की शिद्दत में,
दिलों मे सुलगते अरमाँ गुम हुए.......!

कुछ क्षण.......!
आओं कोई मुठ्ठियों में भीजों मुझे,
कण कण समेट,
बूँद सदृश बंनाओ मुझे,
मै हूँ भी या नहीं,
मेरे होने का अहसास कराओं मुझे,
ढीली पड़ी जो मुठ्ठियाँ,
फिर ना कहना जो हम गुम हुए......!

आते जाते सड़कों की भीड़ में, हम गुमनाम गुम हुए...!

Sunday, 13 March 2016

स्नेह स्वर

अपनत्व के वे चंद शब्द,
गुंज उठे थे तब इन कानों में,
भ्रमित सा मन बावरा,
अटका उन शब्दों की जालों में,
स्वरों के लय की जादूगरी,
कैसी थी उन शब्दों में,
बाँध गया जो जीवन,
अदृश्य मोह के अटूट धागों में।

शब्दों के ये आ-स्वर,
जब मिल जाते हैं मन की भावों से,
शब्दों की मधुर रागिनी,
तब घुल मिल जाते हैं प्राणों से,
गीत नए शब्दों के बन,
मिल जाते हैं स्वर की लय से,
स्नेह स्वर इन शब्दों की,
जोड़ती है डोर मन की मन से।

झीलों के झिलमिल दर्पण में वो

नजरों मे वो, झीलों के झिलमिल दर्पण मे वो।

नजरों में हरपल इक चेहरा वही,
चारो तरफ ढूढूा करूँ पर दिखता नहीं,
झीलों के झिलमिल दर्पण मे वो,
देखें ये नजरें पर हो ओझल सी वो।

धुआँ-धुआँ वो अक्स, धूँध मे गुम हो जाए वो।

जगी ये अगन कैसी दिल में मेरे,
ख्यालों मे दिखता धुआँ सा अक्स सामने,
जाने किस धूँध में हम चलते रहे,
हर तरफ ख्यालों की धूँध मे खोया किए।

मन में वो, मन की खामोश झील में गुम सी वो।

चाँदनी सी बादलों में वो ढ़लती रहे,
झिलमिल सितारों मे उनको हम देखा करें,
आते नजर हो झीलो के दर्पण में तुम,
अब तो नजरों में तुम ही हो, जीवन में तुम।

नजरों मे तुम हो, झीलों के झिलमिल दर्पण मे तुम। 

Saturday, 12 March 2016

तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूँ

तुम एक बार जो रूठो, तो मैं दस बार मनाऊँ,
आपकी एक हसीं के लिए मैं तो जान लुटाऊँ,

रूठकर आपका जाना बड़ी प्यारी सी अदा है,
मानकर लौट भी जाना, उफ ये क्या माजरा है,

इन अदाओं में आपका प्यार छलक जाता है,
छलके इन्ही लम्हों में मेरा वक्त गुजर जाता है,

तरकीब नई फिर आपको सताने की ढ़ूंढ़ता हूँ,
रूठ जाने की नई ताक दिल में लिए फिरता हूँ,

मनभ्रमर रस पी लेता रूठे प्रीतम को मनाने में,
यूँ ही गुजर जाती ये जिन्दगानी रूठने मनाने में।

जुदाई

           जुदाई के अंतहीन युगों जैसे पल,
                झकझोरते शांत हृदय को हरपल,
          फासलों के क्षण बढ़ते आजकल,
               लाचार मन आज फिर है विकल।

         खामोश सी अब जुदाई की घड़ियाँ,
               मन कर रहा अब मन से ही बतियाँ,
         नैनों में डूबती चंद यादों की लड़ियाँ,
              फासले अमिट सी दिल के दरमियाँ।

         दिन बीतते महीने साल कम होते,
                हर क्षण जीवन के पल कम होते,
         वक्त के करम कब दामन मे होते,
                किस्मत होती गर तुम मिल जाते।