आसक्त होकर निहारता हूँ मैं वो खुला सा आकाश!
अनंत सीमाओं में स्वयं बंधी,
अपनी ही अभिलाषाओं में रमी,
पल-पल रूप अनंत बदलती,
कभी निराशाओं के काले घनघोर घन,
सन्नाटों में कभी घन की आहट,
वायु सा कभी प्रतिपल तेज चरण,
कभी साए सी चुपचाप, प्रतिविम्ब सी मौन....
आसक्त होकर निहारता हूँ मैं वो खुला सा आकाश!
विशाल भुजपाश में जकड़ी,
व्याकुल मन सी दौड़ती वो हिरणी,
कभी ब्रम्हांड में हुंकार भरती,
वेदनाओं मे क्रंदन करती वो दामिणी,
कभी आँसूओं में करती क्रंदन,
या कभी सन्नाटों के क्षण, आँसुओं के मौन...
आसक्त होकर फिर निहारता हूँ मैं वो खुला आकाश!
जहाँ....
मुक्त पंख लिए नभ में उड़ते वे उन्मुक्त पंछी,
मानो क्षण भर में पाना चाहते हो वो पूरा आकाश...
अनंत सीमाओं में स्वयं बंधी,
अपनी ही अभिलाषाओं में रमी,
पल-पल रूप अनंत बदलती,
कभी निराशाओं के काले घनघोर घन,
सन्नाटों में कभी घन की आहट,
वायु सा कभी प्रतिपल तेज चरण,
कभी साए सी चुपचाप, प्रतिविम्ब सी मौन....
आसक्त होकर निहारता हूँ मैं वो खुला सा आकाश!
विशाल भुजपाश में जकड़ी,
व्याकुल मन सी दौड़ती वो हिरणी,
कभी ब्रम्हांड में हुंकार भरती,
वेदनाओं मे क्रंदन करती वो दामिणी,
कभी आँसूओं में करती क्रंदन,
या कभी सन्नाटों के क्षण, आँसुओं के मौन...
आसक्त होकर फिर निहारता हूँ मैं वो खुला आकाश!
जहाँ....
मुक्त पंख लिए नभ में उड़ते वे उन्मुक्त पंछी,
मानो क्षण भर में पाना चाहते हो वो पूरा आकाश...