कितनी सारी, बातें करती हो तुम!
और, मैं चुप सा!
बज रही हो जैसे, कोई रागिनी,
गा उठी हो, कोयल,
बह चली हो, ठंढ़ी सी पवन,
बलखाती, निश्छल धार सी तुम!
और, मैं चुप सा!
गगन पर, जैसे लहराते बादल,
जैसे डोलते, पतंग,
धीरे से, ढ़लका हो आँचल,
फुदकती, मगन मयूरी सी तुम!
और, मैं चुप सा!
कह गई हो, जैसे हजार बातें,
मुग्ध सी, वो रातें,
आत्ममुग्ध, होता ये दिन,
गुन-गुनाती, हर क्षण हो तुम!
और, मैं चुप सा!
कितनी सारी, बातें करती हो तुम!
और, मैं चुप सा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)