Saturday 2 January 2016

वो पाषाण हृदय क्या जाने?

वो पाषाण हृदय क्या जाने?
हृदय है तो, पीड़ा भी होगी!

व्यथा होती है सागर सी गहरी,
पीड़ा होती है कितनी असह्य,
टूटते हैं तार कितने ही जीवन के,
आशाओं की, उम्मीदों की, भावनाओं की,
वो पाषाण हृदय क्या जाने?
हृदय है तो, पीड़ा भी होगी!

तोड़ते है जो हृदय किसी का,
आशाओं के फूल वो मसल देते हैं,
तोड़ जाते है तार मन के प्रांगण के,
देख मगर कहाँ पाता है कोई आँसू, 
विह्वलता का, नीरवता का, अधीरता का,
वो पाषाण हृदय क्या जाने?
हृदय है तो, पीड़ा भी होगी!

गर रखते हो भावुक हृदय,
मत तोड़ना किसी हृदय की आशा,
समझो आँखों की विवश भाषा,
आशाओं में बसता इक जीवन,
भावुकता का, विवशता का, आकंक्षाओं का,
वो पाषाण हृदय क्या जाने?
हृदय है तो पीड़ा भी होगी!

तू शोकाकुल मत हो!

तू शोकाकुल मत हो!

एक जीवन ही तो छूटा है,
शाखा था ईक विशाल,
बस शाखा ही तो टूटा है,
छाए थे जिनके फलदार घने,
विधि ने बस इतना ही तो लूटा है।

तू शोकाकुल मत हो!

शाख गुलशन में और भी हैं,
निराशा तज, नई शाखा तू चुन,
एहसास जीवन का पाने को,
अधीर न हो, सहारा तू इक नई ढूंढ़,
या नीर तू खुद विशाल बन जा,
शीतल तू बन गैरों का तू छाया बन जा।

तू शोकाकुल मत हो!

फासले सदियों के

सदियों के हैं अब फासले,
दिल और सुकून के दरमियाँ,
पीर-पर्वतों के हैं अब दायरे,
सागर और साहिल के दरमियाँ।

खामोंशियों को गर देता कोई सदाएँ,
दिल की गहराईयों मे कोई उतर जाए,
साहिल की अनमिट प्यास बुझा जाए,
दूरियाँ ना रहे अब इनके दरमियाँ।

सागर-लहरों को मिल जाता किनारा,
पर्वत झूम उठता देख दिलकश नजारा,
साहिलों के भी सूखे होठ भीग जाते,
फासले जो हैं दरमियाँ वो मिट जाते।

तन्हाईयों के सिलसिले

तन्हाईयों के सिलसिले घेरे हैं दूर तक हमे,
तृष्णगी की रवानगी मे भी आ रहें हैं अब मजे।

खलिश थी जिन हसीन फूलों भरी वादियों की हमे,
ख्यालों की तन्हाईयों में अब, फैली है दूर तक सामने।

हर मंजर है तन्हा पर इनमे भी है इक रवानगी,
जज्बातों में उथल-पुृथल पर लिए इक वानगी।

हर शख्स यूँ तो तन्हा है जीवन के इस मेले में,
चल दूर कही चल ऐ दिल मिलते है कही अकेले में।

खुमारियों में भी साथ देती हैं दिल की धड़कनें,
इन धड़कनों में तू भी कहीं दिखता नजर के सामने।

Friday 1 January 2016

तलाशती हैं आँखें...फिर!

तलाशती हैं आँखें...फिर !

प्यार के वही लम्हे,
फुर्सत के वही क्षण,
सुंदरता का वही मंजर,
बेचैन साँसों का थमके आना।

तलाशती हैं आँखें...फिर !

समय का रुक जाना,
यादों मे बस खो जाना,
बाहों में तेरी सो जाना,
लम्हातों का फिर थम जाना।

तलाशती हैं आँखें...फिर !

उनका छम से आना,
आँखों मे ख्वाब जगाना,
हसरतों को रंगीन बनाना,
दिल पर बादलों सा छा जाना।

तलाशती हैं आँखें...फिर !

एक बार जो कह दे तू!

एक बार जो कह दे तू!
आसमानों के मध्य आकर,
बादल वही पर ठहर जाएंगे।

एक बार जो कह दे तू!
विरानों के सीने मे जाकर,
कोलाहल से ये भर जाएंगे।

एक बार जो कह दे तू!
इन बागों के समीप जाकर,
फूल भी खिलना भूल जाएंगे।

एक बार जो कह दे तू!
ब्रम्हांड के कहकहों में आकर,
भूमण्डल वहीं पर ठहर जाएंगे।

तू कहता क्यूँ नही कुछ?
क्या तेरे कण्ठ अवरुद्ध है?
तू कह दे तो मनप्राण खिल जाएंगे।

विश्राम दे प्राणों को तू

उत्कृष्ठ आकांक्षाओं की उत्कंठा,
अति से अतिशय पाने की इक्षाएं,
हर क्षण मधु पीने की अतिशयता,
विश्राम कहाँ देती प्राणों को!

असंतुष्ट इक्षाओं की पराकाष्ठा,
जगाती अतृप्त तृष्णा प्राणों मे,
हर क्षण नया आसमान की उत्कंठा,
विश्राम कहाँ देती प्राणों को!

कुछ क्षण ठहर जा असंतुष्ट मन,
मधु की चाहत, इच्छाओं को तू तज,
शांत कर उत्कंठा, मिल जाएगी पराकाष्ठा,
मिले कुछ क्षण विश्राम प्राणों को।

पंथ महानिर्वाण का

उत्कर्ष के हों या अवसान का,
राहें तमाम ले जाती उस ओर,
निवास जहाँ उस परब्रम्ह का है,
वो पंथ जहाँ महा निर्वाण है।

आकांक्षाएँ जीवन की सारी,
शायद पूरी हो जाती इक जगह,
विषाद मनप्रांगण की मिट जाती,
वो पंथ जहाँ महा निर्वाण है।

राहें प्यासी जीवन की सारी,
शायद मिलती हैं इक जगह,
केन्द्रित ये इक जगह हो जाती,
वो पंथ जहाँ महा निर्वाण है।

तज सांसारिक इच्छाएं सारी,
सत्य को परख तू उस जगह,
अवसाद विसाद जहां मिट जाती,
वो पंथ जहाँ महा निर्वाण है।

महनिर्वाण मृत्यु मे शायद

महनिर्वाण मृत्यु मे शायद!

पंथ जिसपर ईश्वर का निवास है,
आत्माएँ विलीन जहाँ हो जाती है,
विकार मन के जहाँ घुल जाते हैं,
महानिर्वाण शायद वहीं मिलता है।

ईश तत्वग्याण का प्रारंभ जहाँ है,
किरण सत्यमार्ग का फूटता जहाँ है,
आशा-निराशा का उत्थान जहाँ है,
महानिर्वाण शायद वहीं मिलता है।

आधार स्तम्भ जो जीवन का है,
प्रारंभ वही तो महाजीवन का है,
जीवन मृत्यु जिसकी सीमा रेखा है,
महानिर्वाण शायद वहीं मिलता है।

नववर्ष पर छोटी सी कामना!

नववर्ष पर छोटी सी कामना!

नव-प्रभात मिले नव-ऊर्जा,
नव प्रेरणा जगे नव चेतना, 
नवधारणा उपजे नवकामना,
नवदृष्टि खिले नित्य-नवपटल, 
नव-आकाश फैले नव-प्रकाश, 
नववर्ष,नवचाह, नव हो जीवन।

नव ल्क्ष्य मिले नवशिखर,
नव आशा मिले नवविहान,
नव तपस्या ले नव साधना,
नव धैर्य मिले नव प्रेरणा,
नव लगन मिले नव चेतना,
नववर्ष,नवचाह, हो नवजीवन।

नव प्रकाश, नव आकाश,
नव विश्वास नव उल्लास,
नव हिमम्त जगे नव आस,
नव विचार के नव निर्झर,
नव प्रणाम मिले नव आशीष।
नववर्ष,नवसंघर्ष,नव हो जीवन।

नववर्ष पर छोटी सी कामना!