Sunday, 20 December 2015

वो मधुर आवाज

वो मधुर आवाज जीवन का आवर्त लिए
कानों मे गूंजती सदा प्रिय अहसास लिए,

आवाज.... जिसमे है माधूर्य,
कोमल सा रेशमी दिलकश तान,
जैसे कोयल ने छेड़ी हो सदा,
कूक से उसकी सिहर उठा हो विराना,
पत्तियों को छेड़ा हो हवाओं ने,
उसकी सरसराहट जैसे रही है गूंज,
भँवरे जैसे सुना गए हो गीत नया,
लहरें जैसे बेकल हों सुनाने को कोई बात ।

बारबार वही आवाज जाती है क्यूँ कर
मन को बेकल और उद्विग्न,
हृदय के झरमुट मे गूंजती वो शहनाई,
क्युँ सुनने को होता मैं बेजार
जबकि मुझे पता है,
वो आवाज तो है कही मुझसे दूर,
नहीं है उसपे वश मेरा,
यकी की हदों से से कही दूर
जहां नही पहुच पाते मेरे हाथ,
कल्पना ने तोड़ दिए है अपने दम,

वक्त भी है कितना बेरहम,
भाग्य भी है कितना निष्ठुर,
ईश्वर का निर्णय भी है कितना कठोर
क्युं नही पूरी कर सकता मेरी लघु याचना,
बस वो मधुरआवज ही तो मांगी है हमने,
प्रिय अहसास की ही तो है प्यास,
जीवन का आवर्त ही तो मांगा है मैनें।

जीवन के इस पार या
जीवन के उस पार,
मैं सुन पाऊंगा वो मधुर आवाज,
मेरी क्षुधा न होगी कम, प्यास रहेगी सदा ।

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