ए जिन्दगी, इन रास्तों का पता अब तू ही मुझको बता।
ये किस मुकाम पर आ पहुँची है जिन्दगी,
न अपनों की खबर न मजिलों का हेै पता,
सहरा की धूल मे कहीं, खो गई हर रास्ता,
चँद सांसे ही बची अब, आपसे ही वास्ता।
अंतहीन मरुभूमि सी, लग रही ये जिन्दगी,
धूल सी जम गई समुज्जवल सोच पर मेरे,
संकुचित सिमट रहे, अब दायरे विश्वास के,
मुकाम अब ये कौन सी जिन्दगी के वास्ते।
रेखाएँ सी खिची हुई, हर तरफ यहाँ वहाँ,
अंजान इन रास्तों पर कदम रखें तों कहाँ,
अक्ल जम सी गई हैं, देख कर विरानियाँ,
ये किस मुकाम पर ले आई मेरी रवानियाँ।
ए जिन्दगी, इन रास्तों का पता अब तू ही मुझको बता।
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