Friday, 5 February 2016

जीवन की हाला

यूँ तो पी है मैने भी हाला,
जीवन के सैकड़ों उन्मुक्त क्षण की प्याला,
मिली है खुमारी मुझको भी,
अनगिनत मस्त हाले के प्याले की।

पर मैं अब भी हूँ प्यासा,
कुछ और उन्मुक्त क्षणों के आहट का,
नहीं हुआ मन आश्वस्त अभी,
तुम दे दो जीवन के कुछ क्षण और अभी।

पी जाऊँ मैं जीवन विष भी,
मद प्याले की लबालब हाला के संग,
गरल जीवन का, छल सकेगा मुझको क्या,
खुमारी हाला की जब चढ़ जाएगी मुझपर भी।

लेकिन बदली है कुछ हाला भी,
उन्मुक्तता कहीं खोई इसकी दामन से,
छल रही ये जीवन को खुद गरल बनकर,
तुम हाला की प्याला वही फिर लाओ जीवन की।

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