Friday, 1 April 2016

कहानियाँ

जीवन के विविध जज्बातों से जन्म लेती हैं कहानियाँ।

कहानियाँ लिखी नहीं जाती है यहाँ,
बन जाती है खुद ही ये कहानियाँ,
हम ढ़ूंढ़ते हैं बस अपने आप को इनमे यहाँ,
यही तो है तमाम जिंदगी की कहानियाँ।

किरदार ही तो हैं बस हम इन कहानियों के,
रंग अलग-अलग से हैं सब किरदारों के,
कोई तोड़ता तो कोई बनाता है घर किसी के,
नायक या खलनायक बनते हम ही जिन्दगी के।

भावनाओं के विविध रूप रंग में ये सजे,
संबंधों के कच्चे रेशमी डोर में उलझे,
पल मे हसाते तो पल मे आँसुओं मे डुबोते,
मिलन और जुदाई तो बस पड़ाव कहानियों के।

आँखों मे आँसू किसी के यूँ ही नहीं छलकते,
जज्बात दिलों के कुछ कहते हैं रो रो के,
कहानियाँ कह जाती है ये व्यथा इस मन के,
खुशी और गम में ही छुपे कहानियाँ जिन्दगी के।

कहानियाँ लिखी नहीं जाती बनती है खुद ही कहानियाँ।

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