Saturday, 16 April 2016

बोझिल पलकें

धूल मैं उन राहों की, जिन राहों पे है मेरा प्रीतम वो।

नयन अभिराम निहारती हैं, बस अब राह वो,
जिस दुरूह पथ पर, चल पड़ा था मेरा अंजान वो,
छूटे थे दामन जहाँ, छूटा जहाँ था हाथ वो,
निष्पलक नैन निहारते, राह भूली अब दिन रात वो।

अविरल भीगीं से नैन, बोझिल सी पलकें हैं वो,
बस यादों में अंजान की, अनवरत खोई सी है वो,
लग रहा अंजान अब, शक्ल पहचानी सी वो,
दिल मे बसते थे कभी, बेगाने से अब लगते हैं वो।

चुभ रहे कील से अब, याद बनकर दिल में वो,
हसरत फूलों की थी, उजड़ा है अब गुलशन ही वो,
यादों में मूरत है उसकी, अब सपनों मे बस वो,
धूल मैं उन राहों की, जिन राहों पे है मेरा प्रीतम वो।

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