कुछ सपने देखे ऐसे, सच जो ना हो सके,
आँखो में ही रहे पलते, बस अपने ना हो सके,
सपना देखा था इक छोटा सा,
मुस्कुराऊँगा जीवन भर औरों की मुस्कान बनकर,
फूलों को मुरझाने ना दूंगा,
इन किसलय और कलियों में रंग भर दूंगा,
पर जानता ही नहीं था कि आते हैं पतझड़ भी,
उजड़ चाते हैं कभी बाग भी खिल जाने से पहले,
हम सपने ही रहे देखते, इस सच को कब जान सके।
मेरी आँखो में ही रहे पलते, बस अपने ये ना हो सके।
सपना इक देखता था बचपन से,
जिन गलियों मे बीता बचपन उनकी तस्वीर बदल दूँगा,
निराशा हर चेहरे की हर लूंगा,
खुशहाली के बादल से जीवन रस टपकेगा,
पर जानता नही था कि मैं खुद ना वहाँ रहूंगा,
प्रगति के पथ पर, जीवन के आदर्श ही बदल लूंगा,
हम आदर्शों को रहे रोते, और खुद के ही ना हो सके।
इन आँखो में ऐसे ही सपने, बस अपने ये ना हो सके,
कुछ सपने देखे थे ऐसे, सच जो ना हो सके......!
आँखो में ही रहे पलते, बस अपने ना हो सके,
सपना देखा था इक छोटा सा,
मुस्कुराऊँगा जीवन भर औरों की मुस्कान बनकर,
फूलों को मुरझाने ना दूंगा,
इन किसलय और कलियों में रंग भर दूंगा,
पर जानता ही नहीं था कि आते हैं पतझड़ भी,
उजड़ चाते हैं कभी बाग भी खिल जाने से पहले,
हम सपने ही रहे देखते, इस सच को कब जान सके।
मेरी आँखो में ही रहे पलते, बस अपने ये ना हो सके।
सपना इक देखता था बचपन से,
जिन गलियों मे बीता बचपन उनकी तस्वीर बदल दूँगा,
निराशा हर चेहरे की हर लूंगा,
खुशहाली के बादल से जीवन रस टपकेगा,
पर जानता नही था कि मैं खुद ना वहाँ रहूंगा,
प्रगति के पथ पर, जीवन के आदर्श ही बदल लूंगा,
हम आदर्शों को रहे रोते, और खुद के ही ना हो सके।
इन आँखो में ऐसे ही सपने, बस अपने ये ना हो सके,
कुछ सपने देखे थे ऐसे, सच जो ना हो सके......!
No comments:
Post a Comment