Thursday, 19 May 2016

रिश्ता

रिश्तों की नर्म भूमि पर ही,
सोते, जगते और सपने देखते हैं हम,
ये रिश्ते दिलों के करीब ना हों तो,
उम्र भर बस रोते और सिसकते हैं हम।

जुड़ते हैं जब रिश्ते नाजुक नए,
कई आँखों को नम कर जाते हैं ये,
फिसले जो हाथों से कुछ रिश्ते,
आँखों के बंद होने तक तड़पाते हैं ये।

खेलते हैं जो ऱिश्तों में भावना से,
वो हृदय कोमल नहीं पत्थर का है इक टुकड़ा,
कच्चे धागों की गर्माहट से है दूर वो,
इस भीड़ में जीवन की बस तन्हा ही वो रहा ।

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