हरी सी वो चूड़ियाँ, गाते हैं गीत सावन के,
छन-छन करती वो चूड़ियाँ, कहते हैं कुछ हँस-हँस के,
नादानी है ये उनकी या है वो गीत शरारत के?
चहकी हाथों में हरीतिमा, ललचाए मन साजन के...
छनकती है चूड़ियाँ, कलाई में उस गोरी के,
हँसती हैं कितनी चूड़ियाँ, साजन के मन बस-बस के,
चितवन चंचल है कितनी हरी सी उस चूड़ी के!
चहकी हाथों में हरीतिमा, ललचाए मन साजन के...
भीग चुकी हैं ये चूड़ियाँ, बदली में सावन के,
मदहोश हुई ये चूड़ियाँ, प्रेम मद सावन संग पी-पी के,
अब गीतों में आई रवानी, हरी सी उस चूड़ी के!
चहकी हाथों में हरीतिमा, ललचाए मन साजन के...
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