Tuesday, 19 September 2017

निशिगंधा

घनघोर निशा, फिर महक रही क्युँ ये निशिगंधा?

निस्तब्ध हो चली निशा, खामोश हुई दिशाएँ,
अब सुनसान हो चली सब भरमाती राहें,
बागों के भँवरे भी भरते नहीं अब आहें,
महक उठी है,फिर क्युँ ये निशिगंधा?
प्रतीक्षा किसकी सजधज कर करती वो वहाँ?
मन कहता है जाकर देखूँ, महकी क्युँ ये निशिगंधा?

घनघोर निशा, फिर महक रही क्युँ ये निशिगंधा?

है कोई चाँद खिला, या है वो कोई रजनीचर?
या चातक है वो, या और कोई है सहचर!
क्युँ निस्तब्ध निशा में खुश्बू बन रही वो बिखर!
शायद ये हैं उसकी निमंत्रण के आस्वर!
क्या प्रतीक्षा के ये पल अब हो चले हैं दुष्कर?
मन कहता है जाकर देखूँ, बिखरी क्युँ ये निशिगंधा?

घनघोर निशा, फिर महक रही क्युँ ये निशिगंधा?

यूँ हर रोज बिखरती है टूटकर वो निशिगंधा?
जैसे कोई विरहन, महकती गीत विरह की हो गाती!
आशा के दीप प्राणों में खुश्बू संग जलाती,
सुबासित नित करती हो राहें उस निष्ठुर साजन की,
प्रतीक्षा में खुद को रोज ही वो सजाती....
मन कहता है जाकर देखूँ, सँवरी क्युँ ये निशिगंधा?

घनघोर निशा, फिर महक रही क्युँ ये निशिगंधा?

8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (06-02-2020) को 'बेटियां पथरीले रास्तों की दुर्वा "(चर्चा अंक - 3603) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है 

    रेणु बाला 

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    1. आदरणीया रेणु जी, आपकी प्रशंसा हमेशा ही हमरा उत्साहवर्धन करती रही है। और आपकी चयनित रचनाओं का हिस्सा होना अत्यन्त ही सौभाग्य की बात है। आभारी हूँ आपका।

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  2. आशा की किरण अमर है।
    बहुत सुंदर लेखन।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय रोहितास जी। इस पुरानी रचना पर प्रतिक्रिया हेतु शुक्रिया ।

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  3. बहुत ही सुन्दर सरस अप्रतिम सृजन
    वाह!!!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी। इस पुरानी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ ।

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  4. वाह!बहुत सुंदर आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया आँचल जी। इस पुरानी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ ।

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