क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....
तन सराबोर, हुआ इन रंगों से,
तन्हा दूर रहे, कैसे कोई अपनों से?
भीगे है मन कहाँ, फागुन के इन रंगों से,
तब भीगा वो तेरा स्पर्श, मुझे याद आए.....
क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....
घटाओं पे जब बिखरे है गुलाल,
हवाओं में लहराए है जब ये बाल,
फिजाओं के बहके है जब भी चाल,
तब सिंदूरी वो तेरे भाल, मुझे याद आए....
क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....
नभ पर रंग बिखेरती ये किरणें,
संसृति के आँचल, ये लगती है रंगने,
कलिकाएँ खिलकर लगती हैं विहँसने,
तब चमकते वो तेरे नैन, मुझे याद आए....
क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....
फागुनाहट की जब चले बयार,
रंगों से जब तन को हो जाए प्यार,
घटाओं से जब गुलाल की हो बौछार,
तब आँखें वो तेरी लाल, मुझे याद आए....
क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....
तन सराबोर, हुआ इन रंगों से,
तन्हा दूर रहे, कैसे कोई अपनों से?
भीगे है मन कहाँ, फागुन के इन रंगों से,
तब भीगा वो तेरा स्पर्श, मुझे याद आए.....
क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....
घटाओं पे जब बिखरे है गुलाल,
हवाओं में लहराए है जब ये बाल,
फिजाओं के बहके है जब भी चाल,
तब सिंदूरी वो तेरे भाल, मुझे याद आए....
क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....
नभ पर रंग बिखेरती ये किरणें,
संसृति के आँचल, ये लगती है रंगने,
कलिकाएँ खिलकर लगती हैं विहँसने,
तब चमकते वो तेरे नैन, मुझे याद आए....
क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....
फागुनाहट की जब चले बयार,
रंगों से जब तन को हो जाए प्यार,
घटाओं से जब गुलाल की हो बौछार,
तब आँखें वो तेरी लाल, मुझे याद आए....
क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
४ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पुरुषोत्तम जी,
ReplyDeleteअभी तो वसंत आने में भी कुछ दिन हैं पर आप तो फागुन के रंग में रंग गए. कुमाऊँ में दीपावली के कुछ दिन बाद से ही होली की बैठकें लगना शुरू हो जाती हैं और अगले साढ़े चार महीनों तक रसिकगण उसकी मस्ती में सराबोर रहते हैं. आपकी रचना ने मेरे अल्मोड़ा प्रवास की याद ताज़ा कर दी.
आपका आशीष मिला, फागुन हुआ। बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय गोपेश जी।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आदरणीय अनुराधा जी। फागुन सुहावन हो।
Deleteफागुनाहट की जब चले बयार,
ReplyDeleteरंगों से जब तन को हो जाए प्यार,
घटाओं से जब गुलाल की हो बौछार,
तब आँखें वो तेरी लाल, मुझे याद आए....
लाजबाब.... सादर नमस्कार
ह्रदय से आभार लिए फागुन की बयार। बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी
Deleteसुंदर
ReplyDeleteभाई जी
बहुत-बहुत शुक्रिया पथिक जी। रंगों भरे त्योहार की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteघटाओं पे जब बिखरे है गुलाल,
ReplyDeleteहवाओं में लहराए है जब ये बाल,
फिजाओं के बहके है जब भी चाल,
तब सिंदूरी वो तेरे भाल, मुझे याद आए....
फागुन के रंगों में डूबी , बहुत ही सुंदर , अनुपम भावों से भरी रचना आदरणीय पुरुषोत्तम जी | सस्नेह शुभकामनायें |
फागुन की बयार संग गुलाल भरा आभार आदरणीया रेणु जी।
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