तुम जब-जब दो पग मेरे स॔ग थे...
हम, हम में थे....
हम! तुझ में ही खोए हम थे,
जुदा न खुद से हम थे,
तुम संग थे,
तेरे पग की आहट मे थे,
कुछ राहत मे थे,
कुछ संशय में हम थे!
कहीं तुम और किसी के तो न थे?
तुम कहते थे....
हम! बस सुनते ही रहते थे,
तुम दो पल थे,
पर वो पल क्या कम थे?
गूंजते वो पल थे,
संग धड़कन के बजते थे,
आँखों में सजते थे,
उस पल, तुम बस मेरे ही होते थे!
वो दो पग थे.....
पर कहीं भी रुके न हम थे,
उस पथ ही थे,
जिस पथ तुम संग थे,
उस पल में हारे थे,
संग तुम्हारे थे,
वो नदी के किनारे थे,
बहती उस धार में तेरे ही इशारे थे!
तुम जब-जब दो पग मेरे स॔ग थे...
हम, हम में थे....
कभी, जुदा न खुद से हम थे.....
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