आशियाँ उजड़े, वीरान हुई ये बस्तियां,
है बस अनुत्तरित से कुछ अनसुलझे सवाल!
एक एक कर बुझते गए दीये सारे,
धूप, अंधेरों में हौले-हौले से घुलते गए,
किरणों में सिलते गए सैकड़ों मलाल,
आसमां पर आ बिखरे रंग गुलाल!
बस्तियों से दूर हो चले ये उजाले,
सांझ हुई या हैं ये गर्त अंधेरों के प्याले,
स्तब्ध खमोश हो चले सब सहचर,
सन्नाटों में चीख रहे ये निशाचर!
छल-छल करती पसरती ये रात,
पल-पल बोझिल होता ये सूना मंजर,
हर क्षण फैला है मरघट सा आलम,
बस्तियों में व्याप चुके हैं मातम!
अब शेष रह गए हैं कुछ सवाल,
और शेष बची हैं कुछ टूटी सी तस्वीरें,
उस रौशनी का है बस ख्याल भर,
शायद, वापस आएं वो मुड़कर!
आशियाँ उजड़े, वीरान हुई ये बस्तियां,
है बस अनुत्तरित से कुछ अनसुलझे सवाल!
है बस अनुत्तरित से कुछ अनसुलझे सवाल!
एक एक कर बुझते गए दीये सारे,
धूप, अंधेरों में हौले-हौले से घुलते गए,
किरणों में सिलते गए सैकड़ों मलाल,
आसमां पर आ बिखरे रंग गुलाल!
बस्तियों से दूर हो चले ये उजाले,
सांझ हुई या हैं ये गर्त अंधेरों के प्याले,
स्तब्ध खमोश हो चले सब सहचर,
सन्नाटों में चीख रहे ये निशाचर!
छल-छल करती पसरती ये रात,
पल-पल बोझिल होता ये सूना मंजर,
हर क्षण फैला है मरघट सा आलम,
बस्तियों में व्याप चुके हैं मातम!
अब शेष रह गए हैं कुछ सवाल,
और शेष बची हैं कुछ टूटी सी तस्वीरें,
उस रौशनी का है बस ख्याल भर,
शायद, वापस आएं वो मुड़कर!
आशियाँ उजड़े, वीरान हुई ये बस्तियां,
है बस अनुत्तरित से कुछ अनसुलझे सवाल!
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१० जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ...
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ReplyDeleteअब शेष रह गए हैं कुछ सवाल,
और शेष बची हैं कुछ टूटी सी तस्वीरें,
उस रौशनी का है बस ख्याल भर,
शायद, वापस आएं वो मुड़कर!
अनुपम सृजन
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ...
Deleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ...
Deleteवाह!!लाजवाब सृजन पुरुषोत्तम जी ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ...
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ...
Deleteबहुत ही सुन्दर आदरणीय
ReplyDeleteसादर
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ...
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