Thursday, 9 May 2019

स्वप्न में मिलें

चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...

दिन उदास है, अंधेरी सी रात है!
बिन तेरे साथिया, रास आती ना ये रात है!
किससे कहें, कई अनकही सी बात है!
हकीकत से परे, कोई स्वप्न ही बुनें,
अनकही सी वही, बात छेड़ लें....

चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...

पलकों तले, यूँ जब भी तुम मिले,
दिन हो या रात, गुनगुनाते से वो पल मिले,
शायद, ये महज कल्पना की बात है!
पर हर बार, नव-श्रृंगार में तुम ढ़ले,
कल्पना के उसी, संसार में चलें.....

चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...

पास होगे तुम, न उदास होंगे हम,
कल्पनाओं में ही सही, मिल तो जाएंगे हम!
तेरे मुक्तपाश में, खिल तो जाएंगे हम!
तम के पाश से, चलो मुक्त हो चलें,
रात ओढ़ लें, उसी राह मे चलें......

चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

10 comments:

  1. वाह बहुत खूबसूरत रचना।

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    1. प्रेरक शब्दों हेतु शुक्रिया आभार आदरणीया कुसुम जी।

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  2. बहुत सुन्दर आदरणीय
    सादर

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    1. प्रेरक शब्दों हेतु शुक्रिया आभार आदरणीया अनीता जी।

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  3. वाह अनुपम भावों का संगम ...

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    1. आदरणीया सदा जी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आभार ।

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  4. पलकों तले, यूँ जब भी तुम मिले,
    दिन हो या रात, गुनगुनाते से वो पल मिले,
    शायद, ये महज कल्पना की बात है!
    पर हर बार, नव-श्रृंगार में तुम ढ़ले,
    कल्पना के उसी, संसार में चलें.....
    वाह बहुत ही खूबसूरत रचना

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    1. आदरणीया अनुराधा जी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आभार ।

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  5. वाह बेहतरीन रचना

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    1. आदरणीया रीतू आसुजा जी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आभार ।

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