Sunday, 28 July 2019

काश के वन

करूं लाख जतन, उग आते है, काश के वन!

ललचाए मन, अनचाहे से ये काश के वन,
विस्तृत घने, अपरिमित काश के वन,
पथ भटकाए, मन भरमाए, ये दूर कहीं ले जाए!
"काश! ऐसा होता" मुझसे ही कहलाए,
कैसा है मन, क्यूं उग आते है, काश के वन!

कब होता है सब वैसा, चाहे जैसा ये मन,
वश में नही होते, ये आकाश, ये घन,
मुड़ जाए कहीं, उड़ जाए कहीं, पड़ जाए कहीं!
सोचें कितना कुछ, हो जाता है कुछ,
उग आते हैं मन में, फिर ये, काश के वन!

बदली है कहाँ, लकीरें इन हाथों की यहाँ,
अपनी ही साँसें, कोई गिनता है कहाँ,
विधि का लेखा, है किसने देखा, किसने जाना!
साँसों की लय का, अपना ही ताना,
संशय में, उग आते हैं बस, काश के वन!

काश! दिग्भ्रमित न करते, ये काश के वन,
दिग्दर्शक बन उगते, ये काश के वन,
होता फिर बिल्कुल वैसा, कहता जैसा ये मन!
न पछताते, न हाथों को मलते हम,
न उगते, न ही भटकाते, ये काश के वन!

करूं लाख जतन, उग आते है, काश के वन!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

8 comments:

  1. वाह्ह्ह्ह्ह् !!! काश के विस्तृत आकाश का आकलन आसान नहीं महाशय 😢

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  2. काश! मैं पूर्ण कोशिश कर पाता। आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीय ।

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  3. वाह! 'काश' शब्द पर इतनी बेहतरीन रचना। अद्भुत है।
    "...
    साँसों की लय का, अपना ही ताना,
    संशय में, उग आते हैं बस, काश के वन! "

    जिंदगी के कुछ पड़ाव पर आने वाला 'काश' को लिख दिया है आपने। सच्च में यह रचना जिंदगी के अनुभवों को कह रही हैं।

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    1. हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीय प्रकाश जी। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-07-2019) को "गर्म चाय का प्याला आया" (चर्चा अंक- 3412) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ।।।।।

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