उलझे ये दो बूँद तुम्हारे, नैन किनारे!
गम अगाध, तुम सह जाते थे,
बिन कुछ बोले, तुम रह जाते थे,
क्या, पीड़ पुरानी है कोई?
या, फिर बात रुहानी है कोई!
कारण है, कोई ना कोई!
क्यूँ उभरे हैं ये दो बूँद, नैन किनारे!
अनुत्तरित ये प्रश्न, नैन किनारे!
अकारण ही, ये मेघ नहीं छाते,
ये सावन, बिन कारण कब आते,
बदली सी, छाई तो होगी!
मौसम की, रुसवाई तो होगी!
कारण है, कोई ना कोई!
बह रहे बूँद बन धार, नैन किनारे!
अनुत्तरित ये प्रश्न, नैन किनारे!
बगैर आग, ये धुआँ कब उभरे!
चराग बिन, कब काजल ये सँवरे!
कोई आग, जली तो होगी!
हृदय ने ताप, सही तो होगी!
कारण है, कोई ना कोई!
क्यूँ बहते हैं जल-धार, नैन किनारे!
अनुत्तरित ये प्रश्न, नैन किनारे!
इक तन्हाई सी थी, नैन किनारे,
मची है शोर ये कैसी, नैन किनारे,
हलचल, कोई तो होगी,
खलल, किसी ने डाली होगी,
कारण है, कोई ना कोई!
चुप-चुप रहते थे बूँदें, नैन किनारे!
उलझे ये दो बूँद तुम्हारे, नैन किनारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
गम अगाध, तुम सह जाते थे,
बिन कुछ बोले, तुम रह जाते थे,
क्या, पीड़ पुरानी है कोई?
या, फिर बात रुहानी है कोई!
कारण है, कोई ना कोई!
क्यूँ उभरे हैं ये दो बूँद, नैन किनारे!
अनुत्तरित ये प्रश्न, नैन किनारे!
अकारण ही, ये मेघ नहीं छाते,
ये सावन, बिन कारण कब आते,
बदली सी, छाई तो होगी!
मौसम की, रुसवाई तो होगी!
कारण है, कोई ना कोई!
बह रहे बूँद बन धार, नैन किनारे!
अनुत्तरित ये प्रश्न, नैन किनारे!
बगैर आग, ये धुआँ कब उभरे!
चराग बिन, कब काजल ये सँवरे!
कोई आग, जली तो होगी!
हृदय ने ताप, सही तो होगी!
कारण है, कोई ना कोई!
क्यूँ बहते हैं जल-धार, नैन किनारे!
अनुत्तरित ये प्रश्न, नैन किनारे!
इक तन्हाई सी थी, नैन किनारे,
मची है शोर ये कैसी, नैन किनारे,
हलचल, कोई तो होगी,
खलल, किसी ने डाली होगी,
कारण है, कोई ना कोई!
चुप-चुप रहते थे बूँदें, नैन किनारे!
उलझे ये दो बूँद तुम्हारे, नैन किनारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 17 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteदुनिया के सामने पत्थर दिल बने रहने वाले का जब कोई अपना करीबी धोखा देता है तो
ReplyDeleteनैनो का नम होना लाजमी हो जाता है
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएं
मेरी रचना दुआ पर आपका स्वागत है
धन्यवाद अश्विनी जी।
Deleteमैने आपकी रचना पढी। बहुत सुन्दर लिखते हैं आप। मैने आपके ब्लॉग को फोलो भी कर लिया है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।
वाह !पुरुषोत्तम जी ,क्या बात है ,बहुत खूब!
Deleteउलझे ये दो बूँद तुम्हारे नैन किनारे ...
चुपचुप रहते ये दो बूँद तुम्हारे नैन किनारे ।
ये चुप्पी बहुत कुछ कह जाती है ,बस इन दो बूँँदों से ।
शुक्रिया आभार आदरणीया ।
Deleteगम अगाध, तुम सह जाते थे,
ReplyDeleteबिन कुछ बोले, तुम रह जाते थे,
क्या, पीड़ पुरानी है कोई?
या, फिर बात रुहानी है कोई!
कारण है, कोई ना कोई!
क्यूँ उभरे हैं ये दो बूँद, नैन किनारे!
बहुत ही भावपूर्ण रचना पुरुषोत्तम जी | आंखों में उमड़े दो बूँद अश्रु पर इतनी सुंदर रचना लिखने का हुनर बस आपके ही पास है | सदर शुभकामनायें और बधाई इस भावनाओं से भरी रचना के इए |
धन्यवाद, मुझे खुशी है कि मैं आपकी प्रशंसा का पात्र बन सका। आभारी हूँ आदरणीया रेणु जी।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सादर आभार आदरणीया।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीय जोशी जी।
Deleteबगैर आग, ये धुआँ कब उभरे!
ReplyDeleteचराग बिन, कब काजल ये सँवरे!
कोई आग, जली तो होगी!
हृदय ने ताप, सही तो होगी!
कारण है, कोई ना कोई!
क्यूँ बहते हैं जल-धार, नैन किनारे!
लाजबाब ,चराग बिन, कब काजल ये सँवरता हैं ,भावनाओं से भरी रचना ,सादर नमन आपको
आपसे मिली इस प्रशंसा हेतु तहे दिल से शुक्रिया आभार आदरणीया कामिनी जी।
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