Saturday, 11 January 2020

चोट

शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!

हुए बेजार, टूटे तार-तार!
टीस सी उठी, असह्य सी चोट लगी,
सर्द कोई, इक तीर सी चली,
मन ही, चीर चली,
गुजरे, वो जिधर हो के...

शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!

बार-बार, फिर वो बयार!
हिल उठी, जमीं, नींव ही ढ़ह चुकी,
खड़ी थी, वो वृक्ष भी गिरी,
बिखरे थे, पात-पात,
गुजरे, वो जिधर हो के...

शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!

टोके ना कोई, यूँ बेकार!
अपना ले, यूँ सपने तोड़े न हजार,
चोट यही, मन की न भली,
सूखी है, हर कली,
गुजरे, वो जिधर हो के...

शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना

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    1. आदरणीया भारती जी, सराहना हेतु साधुवाद।

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  2. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१२-०१-२०२०) को "हर खुशी तेरे नाम करते हैं" (चर्चा अंक -३५७८) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

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  3. बहुत सुंदर रचना आदरणीय

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    1. आदरणीया अनुराधा जी, प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  4. वाह!!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब!!👍

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    1. आदरणीया शुभा जी, आपकी सराहना हेतु हृदयतल से आभारी हूँ ।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १३ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  6. सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. आदरणीया सुजाता प्रिये जी, शुक्रिया आभार।

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  7. Replies
    1. आदरणीय जोशी जी, आभार अभिनन्दन । बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  8. मार्मिकता से ओतप्रोत .. अपनों से चोटिल .. संवेदनशील अभिव्यक्ति ...

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    1. इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ आदरणीय सुबोध जी।

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