Wednesday, 22 January 2020

जीवन-उतने ही दिन

जीवन, उतने ही दिन मेरा!
जितने दिन, इन पलकों में बसे सवेरा!

आएंगे-जाएंगे, जीवन के ये लम्हे,
हम! लौट कहाँ पाएंगे?
जब तक हैं! हम उनकी यादों में हैं,
कल, विस्मृत हो जाएंगे!

रोज छाएगी, ये सुबह की लाली,
ये ना, हमें बुलाएंगी!
सांझ किरण, उपवन की हरियाली
ये भी, हमको भुलाएंगी!

पलकों में भर लूँ, मूंदने से पहले, 
कैद कर लूँ, सपने!
जोर लूँ, कुछ गांठें टूटने से पहले,
कल, फिर ना हो अपने!

जीवन, उतने ही दिन मेरा!
जितने दिन, इन पलकों में बसे सवेरा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 22 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. शुभ प्रभात, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.01.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3589 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. शुभ प्रभात, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय

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  3. जीवन, उतने ही दिन मेरा!
    जितने दिन, इन पलकों में बसे सवेरा! बहुत सुंदर रचना

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    1. शुभ प्रभात, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय

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  4. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ज्योति जी।

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