हे शिव!
अर्पित है, दुविधा मेरी,
समर्पित, मन की शंका मेरी,
बस खुलवा दे, मेरे भ्रम की गठरी,
उलझन, सुलझ जाए थोड़ी,
जोड़ लूँ, मैं ये अँजुरी!
हे शिव!
क्या, सचमुच भगवान,
मांगते हैं, दूध-दही पकवान,
होने को प्रसन्न, चाहते हैं द्रव्य-दान,
लेते हैं, जीवों का बलिदान,
हूँ भ्रमित, मैं अन्जान!
हे शिव!
भीतर, पूजते वो पत्थर,
बाहर, रौंदते जो मानव स्वर,
निकलूं कैसे, मैं इस भ्रम से बाहर,
पूजा की, उन सीढ़ियों पर,
क्यूँ विलखते हैं ईश्वर?
हे शिव!
जीवन ये, स्वार्थ-प्रवण,
मानव ही, मानव के दुश्मन,
शायद, हतप्रभ चुप हैं यूँ भगवन,
घनेरे कितने, स्वार्थ के वन,
भटक रहा, मानव मन!
हे शिव!
पाप-पुण्य, सी दुनियाँ,
ये, सत्य-असत्य की गलियाँ,
धर्म-अधर्म की, तैरती कश्तियाँ,
बहती, नफरत की आँधियां,
भ्रम, हवाओं में यहाँ!
हे शिव!
अर्पित है, दुविधा मेरी,
समर्पित, मन की शंका मेरी,
बस खुलवा दे, मेरे भ्रम की गठरी,
उलझन, सुलझ जाए थोड़ी,
जोड़ लूँ, मैं ये अँजुरी!
हे शिव!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
वाह! बहुत सुंदर शिव आराधना। महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं। शिव मंगल करें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति, महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२२-०२-२०२०) को 'शिव शंभु' (चर्चा अंक-३६१९) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
Deleteपाप-पुण्य, सी दुनियाँ,
ReplyDeleteये, सत्य-असत्य की गलियाँ,
धर्म-अधर्म की, तैरती कश्तियाँ,
बहती, नफरत की आँधियां,
भ्रम, हवाओं में यहाँ!
वाह ! वाह पुरुषोत्तम जी | मन की असीम श्रद्धा और कलम की प्रखरता दोनों के मेल ने भोलेनाथ की अभ्यर्थना में चार चाँद लगा दिए | रचना में पिरोये भाव फलीभूत हों यही कामना है |महाशिवरात्री की आपको ढेरों शुभकामनाएं और बधाई |सादर -
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
Deleteमन को शाँति प्रदान करता भक्तिभाव उत्पन्न करता सुंदर सृजन। महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
Deleteअति उत्तम
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
Deleteअर्पित है, दुविधा मेरी,
ReplyDeleteसमर्पित, मन की शंका मेरी,
बस खुलवा दे, मेरे भ्रम की गठरी..
जब भी किसी सच्चे भक्त का हृदय ऐसे आडंबरों को देख चीत्कार करता है और भावनाएँ शब्द बन जाती हैं, तभी ऐसा सृजन संभव हो पाता है।
सादर प्रणाम अग्रज।
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं। प्रणाम गुणीजन ।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 22 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteक्या, सचमुच भगवान,
ReplyDeleteमांगते हैं, दूध-दही पकवान,
होने को प्रसन्न, चाहते हैं द्रव्य-दान,
लेते हैं, जीवों का बलिदान,
हूँ भ्रमित, मैं अन्जान!
भर्मित मन की उलझन को बेहद भावपूर्ण रचा हैं आपने ,शिव से पूछने की जरूरत ही नहीं खुद के आत्मा से पूछे सारे जबाब यकीनन मिल जाएंगे
सादर नमन
शिव की कृपा आप पर बनी रहे।
Deleteआदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
ReplyDeleteबड़े भाव और श्रद्धा से रची ये रचना और इसमें निहित सुंदर प्रर्थना निश्चिंत ही भोले बाबा तक पहुँच गये होंगे। बस कामना है कि मनोकामना पूर्ण हो। रचना के माध्यम से जो संदेश आपने दिया वो भी विचारणीय है।
शिव की कृपा आप पर बनी रहे।
Deleteक्या, सचमुच भगवान,
ReplyDeleteमांगते हैं, दूध-दही पकवान,
होने को प्रसन्न, चाहते हैं द्रव्य-दान,
लेते हैं, जीवों का बलिदान,
हूँ भ्रमित, मैं अन्जान!
बहुत ही सुन्दर लाजवाब विचारोत्तेजक सृजन
वाह!!!
आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया हेतू हार्दिक आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी
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