Saturday, 14 March 2020

अक्सर

कुछ बातें, अक्सर!
आकर, रुक जाती हैं होठों पर!

निर्बाध, समय बह चलता है,
जीवन, कब रुकता है!
खो जाती हैं सारी बातें, कालचक्र पर,
पथ पर, रह-रह कर,
कसक कहीं, उठती है मन पर,
कह देनी थी, वो बातें,
रुक जाती थी जो आकर,
इन होंठों पर, 
अक्सर!

ठहरी सी, बातों के पंख लिए,
पखेरू, बस उड़ता है!
हँसता है वो, जीवन के इस छल पर,
रोता है, रह-रह कर,
मंडराता है, विराने से नभ पर,
कटती हैं, सूनी सी रातें, 
अनथक, करवट ले लेकर,
जीवन पथ पर, 
अक्सर!

कल-कल, बहता सा ये निर्झर,
रोके से, कब रुकता है!
फिसलन ही फिसलन, इस पथ पर,
नैनों में, बहते मंजर,
फिसलते हांथो से, वो अवसर,
देकर, यादों की सौगातें, 
चूमती हैं, आगोश में लेकर,
इन राहों पर,
अक्सर!

कुछ बातें, अक्सर!
आकर, रुक जाती हैं होठों पर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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इसी क्रम में,  अगली रचना  "अक्सर, ये मन" पढ़ने हेतु यहाँ "अक्सर, ये मन"  पर क्लिक करे

20 comments:

  1. उव्वाहहहह..
    फिसलते हांथो से, वो अवसर,
    देकर, यादों की सौगातें,
    चूमती हैं, आगोश में लेकर,
    इन राहों पर,
    अक्सर!.
    बेहतरीन...
    सादर...

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    1. आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्न हूँ आदरणीया दी। बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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    1. आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आदरणीय मयंक जी।

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  3. कुछ बातें ,अक्सर आकर रुक जाती हैं होठों पर!

    निर्बाध समय चलता है ,जीवन कब रुकता है .....
    वाह!पुरुषोत्तम जी ,बेहतरीन सृजन !

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    1. आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्न हूँ आदरणीया सुधा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 15 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. उत्साहवर्धन हेतु आभारी हूँ आदरणीया

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  5. ठहरी सी, बातों के पंख लिए,

    पखेरू, बस उड़ता है!

    हँसता है वो, जीवन के इस छल पर,

    रोता है, रह-रह कर,

    मंडराता है, विराने से नभ पर,

    कटती हैं, सूनी सी रातें, 

    अनथक, करवट ले लेकर,

    जीवन पथ पर, 

    अक्सर!
    .......
    खूबसूरत यथार्थ..
    यूँ ही तो कटता है जीवन
    यूँ ही तो काटता है जीवन

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    1. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा बहन।

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-03-2020) को 'दंभ के आगे कुछ नहीं दंभ के पीछे कुछ नहीं' (चर्चा अंक 3642) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  7. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन ,सादर नमन आपको

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  8. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी ।

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  9. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण सृजन
    वाह!!!

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