चल चुके दूर तक, प्रगति की राह पर!
रुको, थक चुके हो अब तुम,
चल भी ना सकोगे,
चाह कर!
उस कल्पवृक्ष की, कल्पना में,
बीज, विष-वृक्ष के, खुद तुमने ही बोए,
थी कुछ कमी, तेरी साधना में,
या कहीं, तुम थे खोए!
प्रगति की, इक अंधी दौर थी वो,
खूब दौड़े, तुम,
दिशा-हीन!
थक चुके हो, अब विष ही पी लो,
ठहरो,
देखो, रोकती है राहें,
विशाल, विष-वृक्ष की ये बाहें!
या फिर, चलो एकान्त में
शायद,
रुक भी ना सकोगे!
चाह कर!
तय किए, प्रगति के कितने ही चरण!
वो उत्थान था, या था पतन,
कह भी ना सकोगे,
चाह कर!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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एकान्त (Listen Audio on You Tube)
https://youtu.be/hUwCtbv0Ao0
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एकान्त (Listen Audio on You Tube)
https://youtu.be/hUwCtbv0Ao0
वाह। सुन्दर सृजन। शुभकामनाएं नव सम्वत्सर की।
ReplyDeleteसर, आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी रचना को सार्थकता प्रदान कर रही है। बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDelete--
सुप्रभात आपको।
घर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
कोरोना से बचें।
भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
शुक्रिया महोदय। अनन्त शुभकामनाओं सहित आपके स्वस्थ जीवन की कामना है।
Deleteबहुत खूबसूरत रचना, चैत्र नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteब्लॉग पर पुनः आगमण हेतु आभारी हूँ आदरणीया भारती जी। आपको भी नवरात्र की शुभकामनायें। कृपया कोरोना से अपना ख्याल रखें ।
Deleteवाह!सुन्दर रचना आदरणीय।चैत्र नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteसादर।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया पल्लवी जी। आपको भी नवरात्र की शुभकामनायें। कृपया कोरोना संक्रमण से अपना ख्याल रखें ।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3652 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विर्क जी। कृपया कोरोना संक्रमण से अपना ख्याल रखें ।
Deleteबहुत खूब ,पुरुषोत्तम जी ! सुंदर रचना ! निरंतर आत्ममुग्धता में लीं मानव को कहीं तो ठहरना होगा | आखिर हर यात्रा ए का एक पडाव होता है अब ठहराव जरूरी है | एकांत सृजनशील और मननशील व्यक्तियों के लिए एक वरदान है जहाँ वह आत्मसाक्षात्कार करता है | नव संवत्सर और दुर्गा नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं सादर --
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीया रेणु जी। आपको भी नवरात्र की शुभकामनायें। कृपया कोरोना संक्रमण से अपना ख्याल रखें ।
Deleteचल चुके दूर तक, प्रगति की राह पर!
ReplyDeleteरुको, थक चुके हो अब तुम,
चल भी ना सकोगे,
चाह कर!
रोक दिया खुद ही कुदरत ने हम सब को। ...
रोचक रचना
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया जोया जी। आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु शुक्रिया ।
Deleteकृपया कोरोना की संक्रमण से अपना ख्याल रखें ।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीया ओंकार जी। आपकी प्रतिक्रिया हेतु शुक्रिया ।
Deleteकृपया कोरोना की संक्रमण से अपना ख्याल रखें ।
सुंदर! शानदार यथार्थ और सार्थक सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी । कृपया कोरोना के संक्रमण से अपना ख्याल रखें ।
Deleteउस कल्पवृक्ष की, कल्पना में,
ReplyDeleteबीज, विष-वृक्ष के, खुद तुमने ही बोए,
थी कुछ कमी, तेरी साधना में,
या कहीं, तुम थे खोए!
प्रगति की, इक अंधी दौर थी वो,
खूब दौड़े, तुम,
दिशा-हीन!
सही कहा आपने।
इसी का परिणाम हैं कि आज हम अपने घरों में बंद हैं।
अच्छा सृजन।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया जाफर साहब ।
Deleteकृपया कोरोना के संक्रमण से अपना ख्याल रखें ।