Monday, 25 May 2020

कचोट

देती रही, आहटें,
धूल-धूल होती, लिखावटें,
बिखर कर,
मन के पन्नों पर!

अकाल था, या शून्य काल?
कुछ लिख भी ना पाया, इन दिनों....
रुठे थे, जो मुझसे वे दिन!
छिन चुके थे, सारे फुर्सत के पल,
लुट चुकी थी, कल्पनाएँ,
ध्वस्त हो चुके थे, सपनों के शहर,
सारे, एक-एक कर!

देती रही, आहटें,
धूल-धूल होती, लिखावटें,
बिखर कर,
मन के पन्नों पर!

विहान था, या शून्य काल?
हुए थे मुखर, चाहतों में पतझड़....
ठूंठ, बन चुकी थी टहनियाँ,
कंटको में, उलझी थी कलियाँ,
था, अवसान पर बसन्त,
मुरझाए थे, भावनाओं के गुलाब,
सारे, एक-एक कर!

देती रही, आहटें,
धूल-धूल होती, लिखावटें,
बिखर कर,
मन के पन्नों पर!

सवाल था, या शून्य काल?
लिखता भी क्या, मैं शून्य में घिरा....
अवनि पर, गुम थी ध्वनि!
लौट कर आती न थी, गूंज कोई,
वियावान, था हर तरफ,
दब से चुके थे, सन्नाटों में सृजन,
सारे, एक-एक कर!

देती रही, आहटें,
धूल-धूल होती, लिखावटें,
बिखर कर,
मन के पन्नों पर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

16 comments:

  1. ऐसा हम सबके साथ होता है कभी कभी....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, मुझे तो अपने ही मन के भावों का प्रतिबिंब दिखा रचना में !!!

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    1. आदरणीया मीना जी, अपनी पत्नी की अस्वस्थता की वजह से गत दिनों उलझ सा गया था। अतः कुछ लिख नहीँ पा रहा था । भावनाएं संकुचित थी और पल व्यस्त थे।
      पर अब थोड़ा राहत है।
      आपलोगों की शुभकामनाएँ ही मेरे काम आईं।
      धन्यवाद ।

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    2. ओह ! अब वे स्वस्थ हैं यह जानकर खुशी हुई। ध्यान रखिएगा।

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  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 26 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत ही सुंदर मन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
    अच्छे स्वास्थ्य और शांति के लिए शुभकामनाएँँ।🙏

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया पम्मी जी।

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  4. भावपूर्ण रचना, हर रात के बाद सवेरा आता है !

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  5. बहुत सुंदर सृजन.. आर्त स्वर गूँज उठा भाई ...हम सबके जीवन में कुछ ऐसे क्षण आते हैं जो हमें रोक देते हैं। आशा है अब सब ठीक होगा।

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    1. बिल्कुल सुधा बहन। ईश्वर पर हर क्षण भरोसा ही हमारा संबल होता है और कुछ अपने मरहम लगा ही जाते हैं ।
      बहुत-बहुत धन्यवाद ।।।।

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  6. सवाल था, या शून्य काल?
    लिखता भी क्या, मैं शून्य में घिरा....
    अवनि पर, गुम थी ध्वनि!
    लौट कर आती न थी, गूंज कोई,
    वियावान, था हर तरफ,
    दब से चुके थे, सन्नाटों में सृजन,
    सारे, एक-एक कर!

    हृदयस्पर्शी ,कभी कभी जीवन में ऐसे पल भी आते हैं जब अंतर्मन में द्वंद मचा होता हैं पर लबों पर कोई शब्द आने से भी डरते हैं। परमात्मा पर भरोसा ही सबसे बड़ी शक्ति हैं यहां बिन कहे सब सुना जाता हैं ,आपकी पत्नी जल्द ही पूरी तरह स्वस्थ हो और आपका जीवन फिर से खुशियों से भर जाये।

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    1. आदरणीया कामिनी जी, आपलोगों की शुभकामनाओं से वे अब स्वस्थ हो रही हैं । पुनः आभारी हूँ आपका। आपके सुखद भविष्य की कामना है।

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  7. सवाल हो या शून्य काल दोनों ही बहुत मुश्किल होते हैं सहने ... पर उन्ही से जवाब भी निकल आते हैं ... बसंत के अवसान के बाद ही पतझड़ और फिर नव-सृजन होता है ...
    बहुत ही खूबसूरत अलफ़ाज़ हैं गहरा चिंतन करती रचना ...

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