बिन पिता!
जल रही जैसे,
जीते जी, जीवन की भट्ठी में!
इस जीवन की,
इक चिता!
आँखों में मेरी, जीवन्त है चेहरा तुम्हारा,
है ख्यालों पर मेरी, तेरा ही पहरा,
जल रही जैसे,
जीते जी, जीवन की भट्ठी में!
इस जीवन की,
इक चिता!
आँखों में मेरी, जीवन्त है चेहरा तुम्हारा,
है ख्यालों पर मेरी, तेरा ही पहरा,
पर, दर्शन वो अन्तिम तेरा,
मेरे ही, भाग्य न आया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
यूँ तो, संग रहे तुम, करुणामय यादों में,
गूंज तुम्हारी, है अब भी कानों में,
पर, भीगी सी पलकों में!
तुझको, ना भर पाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
तुम रहे हो बनकर, स्वप्न कोई अनदेखा,
जैसे टूटकर, फिर बनती हो रेखा,
पर, वो ही मूरत अनोखा!
रहा, आँखों में समाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
थी विस्मयकारी, तेरी सारगर्भित बातें,
शेष है जीवन की, वो ही सौगातें,
और, लम्बी होती ये रातें!
इन, रातों नें भरमाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
देकर आधार, अनन्त सिधार गए तुम,
देकर अनुभव का, सार गए तुम,
पर, किस पार गए तुम?
फिर, ढूंढ न पाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
भारी है जीवन पर, इक वो ही व्यथा!
भूल पाऊँ कैसे, तुमको सर्वथा?
कहीं, खत्म हुई जो कथा!
वो, फिर याद आया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
बिन पिता!
जल रही जैसे,
जीते जी, जीवन की भट्ठी में!
इस जीवन की,
इक चिता!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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मेरे ही, भाग्य न आया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
यूँ तो, संग रहे तुम, करुणामय यादों में,
गूंज तुम्हारी, है अब भी कानों में,
पर, भीगी सी पलकों में!
तुझको, ना भर पाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
तुम रहे हो बनकर, स्वप्न कोई अनदेखा,
जैसे टूटकर, फिर बनती हो रेखा,
पर, वो ही मूरत अनोखा!
रहा, आँखों में समाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
थी विस्मयकारी, तेरी सारगर्भित बातें,
शेष है जीवन की, वो ही सौगातें,
और, लम्बी होती ये रातें!
इन, रातों नें भरमाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
देकर आधार, अनन्त सिधार गए तुम,
देकर अनुभव का, सार गए तुम,
पर, किस पार गए तुम?
फिर, ढूंढ न पाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
भारी है जीवन पर, इक वो ही व्यथा!
भूल पाऊँ कैसे, तुमको सर्वथा?
कहीं, खत्म हुई जो कथा!
वो, फिर याद आया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
बिन पिता!
जल रही जैसे,
जीते जी, जीवन की भट्ठी में!
इस जीवन की,
इक चिता!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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पितृ दिवस (Fathers Day) 21 जून पर पापा को विशेष श्रद्धांजलि, जो 48 वर्ष की अल्पायु में (सन 1990 में) ही हमें छोड़ अनन्त सिधार गए...
उस पिता को, अश्रुपूरित श्रद्धांजलि!
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-6-2020 ) को "अन्तर्राष्टीय योग दिवस और पितृदिवस को समर्पित " (चर्चा अंक-3741) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर रचना ,अल्पायु में ही चले गये, अत्यंत दुखद
ReplyDeleteभावभीनी श्रद्धांजलि,
सुंदर भावभीनी रचना
ReplyDeleteभावभीनी श्रद्धांजलि 💐💐
ReplyDeleteश्रद्धासुमन 🙏🙏
ReplyDeleteसमस्त गुणीजनों का आभार...
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