Wednesday, 19 August 2020

सहिष्णुता

रुक नही सकता, सहिष्णुता के नाम पर,
रक्त है तो, उबल भी सकता है ये!

ओढ़ कर चादर, हमनें झेले हैं खंजर,
समृद्ध संस्कृति और विरासत पर,
फेर लूँ, मैं कैसे नजर!
बर्बर, कातिल निगाहें देखकर!
विलखता विरासत छोड़कर!
रक्त है, मेरे भी नसों में,
उबल जाता है ये!

रुक नही सकता, सहिष्णुता के नाम पर!

खोखली, धर्म-निरपेक्षता के नाम पर,
वे हँसते रहे, राम के ही नाम पर,
पी लूँ, कैसे वो जहर!
सह जाऊँ कैसे, उनके कहर,
राम की, इस संस्कृति पर!
रक्त है, मेरे भी नसों में,
उबल जाता है ये!

रुक नही सकता, सहिष्णुता के नाम पर!

गढ़ो ना यूँ, असहिष्णुता की परिभाषा,
ना भरो धर्मनिरपेक्षता में निराशा,
जागने दो, एक आशा,
न आँच आने दो, सम्मान पर,
संस्कृति के, अभिमान पर,
रक्त है, मेरे भी नसों में,
उबल जाता है ये!

रुक नही सकता, सहिष्णुता के नाम पर,
रक्त है तो, उबल भी सकता है ये!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

12 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय जोशी जी। ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहें।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 20 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. Replies
    1. आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। कृपया प्रोत्साहित करते रहें..आदरणीय।
      बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  5. पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.
    दो टूक. किन्तु शिष्टता से व्यक्त भावना.
    धन्यवाद, सिंहाजी.

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    1. आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीया नुपुर जी। जिस तरह से आपने सराहना की है,नतमस्तक हूँ मैं। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  6. सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. आदरणीया ज्योति जी, आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए महत्वपूर्ण है। कृपया प्रोत्साहित करते रहें।
      बहुत-बहुत धन्यवाद।

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