Sunday, 25 October 2020

चुभन

यूँ, खो न देना, सिमटते इन पलों को तुम!

हो गए हो, गुम कहीं आज कल तुम!
हाँ संक्रमण है, कम ही मिलने का चलन है!
वेदना है, अजब सी इक चुभन है!
तो, काँटे विरह के, क्यूँ बो रहे हो तुम?

यूँ, खो न देना, सिमटते इन पलों को तुम!

चल कर ना मिलो, मिल के तो चलो!
हाँ, पर यहाँ, मिल के बिसरने का चलन है!
सर्द रिश्तों में, कंटक सी चुभन है!
तो, रिश्ते भूल के, क्यूँ सो रहे हो तुम?

यूँ, खो न देना, सिमटते पलों को तुम!

पल कर, शूल पर, महकना फूल सा,
हाँ, खिलते फूलों के, बिखरने का चलन है!
पर, बंद कलियों में इक चुभन है!
तो, यूँ सिमट के, क्यूँ घुट रहे हो तुम?

यूँ, खो न देना, सिमटते इन पलों को तुम!

एकाकी, हो चले हो, आज कल तुम,
हाँ, संक्रमण है, एकांत रहने का चलन है!
पर, स्पंदनों में, शूल सी चुभन है!
तो, यूँ एकांत में, क्यूँ खो रहे हो तुम?

यूँ, खो न देना, सिमटते इन पलों को तुम!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

22 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 25 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं व नमन

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  2. बहुत सुन्दर।
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित सादर प्रणाम

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२६-१०-२०२०) को 'मंसूर कबीर सरीखे सब सूली पे चढ़ाए जाते हैं' (चर्चा अंक- ३८६६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. आभार आदरणीया अनीता जी। विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं ।।।।।

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  4. हो गए हो, गुम कहीं आज कल तुम!
    हाँ संक्रमण है, कम ही मिलने का चलन है!
    वेदना है, अजब सी इक चुभन है!
    तो, काँटे विरह के, क्यूँ बो रहे हो तुम?

    वाह उत्कृष्ट

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    1. आपको विजयादशमी की ढेरों शुभकामनाएँ और बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।।

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    1. आप जैसे गुणीजनों का सानिध्य और प्रोत्साहन पाना अत्यन्त ही सुखद है। विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित नमन व आभार।

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  6. विजयोत्सव व उम्दा सृजन की हार्दिक बधाई

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    1. आप जैसे गुणीजनों का सानिध्य और प्रोत्साहन पाना अत्यन्त ही सुखद है। विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित नमन व आभार।

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  7. एकाकी, हो चले हो, आज कल तुम,
    हाँ, संक्रमण है, एकांत रहने का चलन है!
    पर, स्पंदनों में, शूल सी चुभन है!
    तो, यूँ एकांत में, क्यूँ खो रहे हो तुम?

    यूँ, खो न देना, सिमटते इन पलों को तुम!

    बहुत सुन्दर सृजन।
    वाह!!!

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    1. आप जैसे गुणीजनों का सानिध्य और प्रोत्साहन पाना अत्यन्त ही सुखद है। शारदीय विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित नमन व आभार।

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  8. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  9. पर, स्पंदनों में, शूल सी चुभन है!
    तो, यूँ एकांत में, क्यूँ खो रहे हो तुम?

    यूँ, खो न देना, सिमटते इन पलों को तुम! प्रभावशाली लेखनी - - नमन सह।

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  10. टीस सी उठी , बहुत गहन है यह चुभन ।

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  11. एकाकी, हो चले हो, आज कल तुम,
    हाँ, संक्रमण है, एकांत रहने का चलन है!
    पर, स्पंदनों में, शूल सी चुभन है!
    तो, यूँ एकांत में, क्यूँ खो रहे हो तुम?
    यूँ, खो न देना, सिमटते इन पलों को तुम!
    बहुत भावपूर्ण उद्बोधन पुरुषोत्तम जी.
    जो पल अभी है वही अनमोल है. निशब्द करती हैं आपकी लेखनी. 🙏🙏

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