गर हो पाता!
तो, मुड़ जाता, मैं, अतीत की ओर,
और, व्यतीत करता,
कुछ पल,
चुन लाता, कुछ, बिखरे मोती!
मेरा सरमाया!
वो छूटा कल, जो मैं, चुन ना पाया,
मुझसे ही, रूठा पल,
टूटा पल,
समेट लाता, सारे, हीरे मोती!
हो ना पाया!
खोया अतीत, तुझे मैं, छू ना पाया,
पर तुझमें है, मेरा अंश,
मेरा कल,
जलाए, जो, मन की ज्योति!
वर्तमान ये मेरा!
चाहे, अनुभव का, इक संबल तेरा,
मद्धिम, प्रदीर्घ सवेरा,
दुग्ध कल,
और, अंधेरो में, इक ज्योति!
चल उड़ जा!
ओ मन के पंछी, जा, दूर वहीं जा,
अतीत, जहाँ है मेरा,
बीते पल,
चुग ला, बिखरे, वे मेरे मोती!
गर हो पाता!
तो, मुड़ जाता, मैं, अतीत की ओर,
और, व्यतीत करता,
कुछ पल,
चुन लाता, सारे, बिखरे मोती!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुंदर, गुजरे हुए जमाने सिर्फ यादों में बसते हैं
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीया भारती जी
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
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ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (३०-११-२०२०) को 'मन तुम 'बुद्ध' हो जाना'(चर्चा अंक-३९०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सादर आभार
Deleteचल उड़ जा!
ReplyDeleteओ मन के पंछी, जा, दूर वहीं जा,
अतीत, जहाँ है मेरा,
बीते पल,
चुग ला, बिखरे, वे मेरे मोती
बहुत सुंदर रचना पुरुषोत्तम जी। अतीत ना जाने क्यूँ इतना प्यारा लगता है कि मन बार बार उसके ही पास जाकर बैठ जाता हैं। मार्मिक रचना जो सरस है सहज है ।सादर🙏🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया रेणु जी
Deleteहो ना पाया!
ReplyDeleteखोया अतीत, तुझे मैं, छू ना पाया,
पर तुझमें है, मेरा अंश,
मेरा कल,
जलाए, जो, मन की ज्योति!
अनुभवशील प्रसूत सुन्दर रचना।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया। मेरी इस कविताओं की यात्रा में सहयोग देने हेतु शुक्रिया।
Deleteसुन्दर रचना - - नमन सह।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शान्तनु जी। मेरी इस कविताओं की यात्रा में सहयोग देने हेतु शुक्रिया।
Deleteबहुत बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteकाश अतीत के कुछ पल फिर मिलते यही सब सोचते हैं ।
थाम लो इन्ही लम्हों को उससे पहले के वो भी अतीत बन जाए।
बहुत खूब।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया। मेरी इन कविताओं की यात्रा में सहयोग देने हेतु शुक्रिया।
Deleteकाश ... ऐसा होता । सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteरचना से जुड़ने हेतु आभार आदरणीया अमृता जी।
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