कूके न कोयल, ना ही, गाए पपीहा,
तुम जो गए, कल से यहाँ!
भाए न, तुम बिन, ये मद्दिम सा दिन,
लगे बेरंग सी, सुबह की किरण,
न सांझ भाए,
ना रात भाए, कल से यहाँ!
वो बिखरा क्षितिज, कितना है सूना,
वो चित्र सारे, किसी ने है छीना,
बेरंग ये पटल,
सूने ये नजारे, कल से यहाँ!
बड़ी बेसुरी, हो चली ये रागिणी अब,
वो धुन ही नहीं, गीतों में जब,
न गीत भाए,
ना धुन सुहाए, कल से यहाँ!
यूँ अभिभूत किए जाए, इक कल्पना,
बनाए, ये मन, कोई अल्पना,
यादों में आए,
वो ही सताए, कल से यहाँ!
कूके न कोयल, ना ही, गाए पपीहा,
तुम जो गए, कल से यहाँ!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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