Monday, 19 April 2021

रक्तरंजित बिसात

वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!

कौन जाने, क्या हो अगले पल!
समतल सी, इक प्रवाह हो, 
या सुनामी सी हलचल!
अप्रत्याशित सी, इसकी हर बात!

वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!

प्राण फूंक दे या, ये हर ले प्राण!
ये राहें कितनी, हैं अंजान!
अति-रंजित सा दिवस,
या इक घात लगाए, बैठी ये रात!

वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!

जाल बिछाए, वक्त के ये मोहरे,
कब धुंध छँटे, कब कोहरे,
कब तक हो, संग-संग,
कब संग ले उड़े, इक झंझावात!

वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!

कोरोना, वक्त का धूमिल होना,
पल में, हाथों से खो देना,
हँसते-हँसते, रो देना,
रहस्यमयी दु:खदाई, ये हालात!

वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

21 comments:

  1. अब तो हर वक्त संशय बरकरार है न जाने कब...

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  2. बहुत ही सुन्दर सटीक और सार्थक रचना

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  3. बहुत सुन्दर गीत।
    विचारों का अच्छा सम्प्रेषण किया है
    आपने इस रचना में।

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  4. समसामयिक पंक्तियाँ,सुंदर सृजन।
    शह हो मात अंत सुखद होगा।
    सादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-4-21) को "श्वासें"(चर्चा अंक 4042) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  6. बात ठीक ही कही है आपने आदरणीय पुरुषोत्तम जी। हाल तो ऐसा ही है।

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  7. बहुत भयावह है ये सब । आज के वक़्त पर सटीक रचना ।

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  8. वर्तमान समय की विडम्बनाओं की पड़ताल करता कमाल का सृजन
    मार्मिक रचना
    आप हमेशा कुछ नया गढ़ते हैं
    बधाई

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ज्योति खरे साहब। काफी दिनों बाद मेरे ब्लॉग पर पुनः वापसी हेतु आभारी हूँ आपका।

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  9. सामायिक विषय पर सहज प्रवाह लिए हृदय स्पर्शी रचना।
    आज के हालात को कविता में समेटने का सार्थक प्रयास।
    सुंदर सृजन।

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  10. Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीया गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी। हार्दिक स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर। ।।।

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  11. बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति।

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