ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!
लहु-लुहान, यह रणभूमि,
पर, यह रण, अभी थमा नहीं,
निःशस्त्र हूँ, भले ही,
पर शस्त्र, हमने अभी, रखा नहीं,
हमने बांधा है सेहरा, ये समर है मेरा,
रक्त की, अंतिम बूँदों तक,
लड़ना है मुझको ही!
ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!
ये पथ, हों जाएँ लथपथ,
होंगे और प्रशस्त, ये कर्म पथ,
लक्ष्य, समक्ष है मेरे,
छोड़ी है, ना ही, हमने राह अभी,
तुरंग मैं, कर्म पथ का, रण है ये मेरा,
साँसों की, अंतिम लय तक,
लड़ना है मुझको ही!
ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!
बाधाएं, विशाल राहों में,
पर, क्यूँ हो मलाल चाहों में,
भूलें ना, इक प्रण,
कर शपथ, छोड़ेंगे हम ना रण,
तोड़ेगे हर इक घेरा, समर है ये मेरा,
बाधा की, अंतिम हद तक,
लड़ना है मुझको ही!
ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया शकुन्तला जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteसकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ,सराहनीय।
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह्ह! लाजवाब।
सादर प्रणाम 🙏
विनम्र आभार आदरणीया आँचल जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteसुंदर,सारगर्भित संदेशपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया जिज्ञासा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteशानदार👌
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय शिवम जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-04-2021 को चर्चा – 4,044 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
विनम्र आभार। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteहर एक का अपना समर होता है और अपनी ही युद्ध भूमि ... उसे कोई और नहीं लड़ सकता ... यही सन्देश मिल रहा . सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया संगीता स्वरुप जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Delete"निःशस्त्र हूँ, भले ही,
ReplyDeleteपर शस्त्र, हमने अभी, रखा नहीं,"
इन पंक्तियों ने मुझे प्रेरित किया है कि समय कितनी भी दयनीय क्यों ना हो मुझे चलना है अपने मूल्यों पर ही।
विनम्र आभार आदरणीय प्रकाश जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2106...आँकड़ों को दबाने के आकाँक्षी हैं हम? ) पर गुरुवार 22अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteविनम्र आभार। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत ही खूबसूरत और सारगर्भित संदेश पूर्ण रचना! 👌👌👌👌👌👏👏👏👏
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया मनीषा गोस्वामी जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर।
Deleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया ज्योति देहलीवाल जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteआदरणीय सर, बहुत ही सशक्त प्रेरक रचना जो साकारात्मकता का संचार कर हमें संघर्ष से जीतने की प्रेरणा देती है।
ReplyDeleteहृदय से अत्यंत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
विनम्र आभार अनंता जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteसमर से भागना नहीं बल्कि उसका मुकाबला करना है, प्रेरणा देती पंक्तियाँ !
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया अनीता जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय शास्त्री जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन सर।
ReplyDeleteसादर
विनम्र आभार आदरणीया अनीता सैनी जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबाधाएं, विशाल राहों में,
ReplyDeleteपर, क्यूँ हो मलाल चाहों में,
भूलें ना, इक प्रण,
कर शपथ, छोड़ेंगे हम ना रण,
तोड़ेगे हर इक घेरा, समर है ये मेरा,
बाधा की, अंतिम हद तक,
लड़ना है मुझको ही!👌👌👌👌👌👌
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रेणु जी।
Deleteबाहर के संघर्ष से इतर एक युद्ध खुद से भी लड़ता है प्रतिपल!! ये समर अघोषित है और खुद से ही लड़ा जा रहा है जिसे कोई देख नहीं देख सकता!
ReplyDeleteआपकी पारखी दृष्टि, रचना को एक नया आयाम दे गई।
Deleteविनम्र आभार आदरणीया। ।।।
बहुत सुंदर रचना हैं भैया।
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