युगों-युगों, वो ही लड़ा!
ज्यूँ पीर, पर्वत सा, बन कर अड़ा,
चीर कर, धरती का सीना,
सीखा है उसने, जीवन जीना,
हारा कब, मानव,
जीवट बड़ा!
ढ़हते, घिसते, पिसते शिखर देखे,
बहते, उमरते, उफनते सागर देखे,
बवंडर, आईं और गईं,
सुनामियाँ, विभीषिक व्यथा लिख गईं,
जल-प्रलय, कहरी रुक गईं,
महामारी, असह्य कथा ही कह गई,
कांधे, लाशों के बोझ धारे,
झेले, कहर सारे,
पर, हिम्मत कब वो हारे,
संततियों संग, युगों-युगों रहा डटा,
दंश, सह चुका, यह युगद्रष्टा,
मानव, जीवट बड़ा!
विपरीत, पवन कितनी!
घिस-घिस, पाषाण, हुई चिकनी,
संकल्प, हुई दृढ़ उतनी,
कई युग देखे, बनकर युगद्रष्टा,
खूब लड़ा, मानव,
जीवट बड़ा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 25 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया दी।
Deleteवाह! सुंदर।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय विश्वमोहन जी।
Deleteअब भी लड़ ही रहा है पुरुषोत्तम जी। बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है यह आपकी।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी।
Deleteआदरणीय सर, बहुत ही सुंदर प्रेरक रचना जो मानव को अपनी शक्ति याद दिलाती है। मानव सदा ही एक योद्धा रहा है और सदैव एक योद्धा रहेगा और जीतेगा भी। हार्दिक आभार इस सुंदर प्रेरणादायक रचना के लिए व आपको प्रणाम। एक अनुरोध और, मैं के अपने ब्लॉग पर पहली बार कहानी लिखी है, कृपया आयें और उसे पढ़ कर अपना मार्गदर्श और आशीष दें। पुनः आभार।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया अनंता जी।
Deleteआपके ब्लॉग पर जाना एक सुखद अनुभव ने गया मुझे। भविष्य हेतु शुभकामनाएं। ।।।।
आदरणीय सर, आपका आशीष पाना मेरे लिए सौभाग्य है। मेरा अनयरोध है आप मुझे केवल अनंता कह कर पुकारें। मैं आपसे आयु में बहुत छोटी हूँ, औपचारिक सम्बोधन से संकोच होता है।
Deleteबिल्कुल अनंता जी।
Deleteबहुत ही सारगर्भित और आशाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट रचना,आज के परिदृश्य में मानव मन में ऊष्मा का संचार करती हुई आपकी यह रचना संजीवनी बूटी जैसे है,सटीक और सुंदर रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं पुरुषोत्तम जी ।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया जिज्ञासा जी।
Deleteविपरीत, पवन कितनी!
ReplyDeleteघिस-घिस, पाषाण, हुई चिकनी,
संकल्प, हुई दृढ़ उतनी,
कई युग देखे, बनकर युगद्रष्टा,
खूब लड़ा, मानव,
जीवट बड़ा!
सचमुच मनुष्य बड़ा जीवट है विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानता और युगों युगों से जीवट परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर युगदृष्टा बन गया।
बहुत सुन्दर प्रेरक सृजनः
विनम्र आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी।
Deleteमानव जीवटता सदैव विजयी होगी । जय हो ।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया अमृता तन्मय जी।
Deleteहर विप्पति से लड़ता आया है मानव .... आज भी लड़ रहा ... सार्थक रचना ...
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया संगीता स्वरुप (गीत) जी।
Deleteढ़हते, घिसते, पिसते शिखर देखे,
ReplyDeleteबहते, उमरते, उफनते सागर देखे,
बवंडर, आईं और गईं,
सुनामियाँ, विभीषिक व्यथा लिख गईं,
जल-प्रलय, कहरी रुक गईं,
महामारी, असह्य कथा ही कह गई,
कांधे, लाशों के बोझ धारे,
झेले, कहर सारे,
पर, हिम्मत कब वो हारे,
संततियों संग, युगों-युगों रहा डटा,
दंश, सह चुका, यह युगद्रष्टा,
मानव की महिमा बढाती रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ पुरुषोत्तम जी 🙏🙏
विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।
Delete