Sunday 4 April 2021

अश्क जितने

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में,
बंध न पाएंगे, परिधि में!

बन के इक लहर, छलक आते हैं ये अक्सर,
तोड़ कर बंध,
अनवरत, बह जाते है,
इन्हीं, दो नैनों में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में..

हो कोई बात, या यूँ ही बहके हों ये जज्बात, 
डूब कर संग,
अश्कों में, डुबो जाते हैं,
पल, दो पल में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में...

कब छलक जाएँ, भड़के, और मचल जाएँ,
बहा कर संग,
कहीं दूर, लिए जाते है,
सूने से, आंगण में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में...

रोके, ये रुके ना, बन्द पलकों में, ये छुपे ना,
कह कर छंद,
पलकों तले, कुछ गाते हैं,
खुशी के, क्षण में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में...

जज्बात कई, अश्कों से भरे ये सौगात वही,
भिगो कर संग,
अलकों तले, छुप जाते हैं,
गमों के, पल में!

अश्क जितने, इन नैनों की निधि में...
बंध न पाएंगे, परिधि में!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

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    1. विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मयंक जी।

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  2. उत्कृष्ट रचना।
    सादर।

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    1. विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सधु जी।

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  3. बेहतरीन, बहुत ही सुंदर,बधाई हो, नमन

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    1. विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ज्योति जी।

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  4. आपको पढ़ना एक अलग ही अनुभूति को अनुभव करने जैसा है । जैसे सबकुछ ठहर गया हो । अति सुन्दर ।

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    1. हृदयस्पर्शी टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अमृता तन्मय जी।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 7 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया पम्मी जी।

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  6. अब तो आपके 'अश्क' से भी रश्क होने लगा है😀😀🙏🙏बहुत सुंदर रचना।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय विश्वमोहन जी। सदैव स्वागत है आपका।

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  7. वैसे अश्कों को क्यों बांधना परीधि से?
    अश्क है तो बस इन्हें बहने दीजिए
    मन के हर भाव को पिघलने दीजिए
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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    1. हृदयस्पर्शी, भावात्मक टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी।

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  8. अति भावपूर्ण रचना आदरणीय सर
    ----
    सादर

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    1. विनम्र आभार आदरणीया श्वेता जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  9. जज्बात कई, अश्कों से भरे ये सौगात वही,
    भिगो कर संग,
    अलकों तले, छुप जाते हैं,
    गमों के, पल में!
    अश्क जितने, इन नैनों की निधि में...
    बंध न पाएंगे, परिधि में!
    बहुत भावपूर्ण रचना पुरुषोत्तम जी |
    अश्रुओं की निधि से जो अमीर है
    समझ लो उसके पास उसका ज़मीर है |
    बहुत -बहुत शुभकामनाएं और बधाई सुंदर रचना के लिए |

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    1. आपकी तथ्यपरक टिप्पणी हेतु
      विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया रेणु जी।

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