Friday, 14 May 2021

गुमसुम सा, ये घर

बड़ा ही, खुशमिजाज शहर था मेरा,
पर बड़ा ही खामोश, 
गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

कल चमक उठती थी, ये आँखें,
इक उल्लास लिए,
आज फिरती हैं, ये आँखे,
अपनी ही, लाश लिए,
किन अंधेरों में, जा छुपा है सवेरा!

गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

धड़कनें थी, कोई उम्मीद लिए,
कितने संगीत लिए,
अब थम सी गई, हैं साँसें,
विरहा के, गीत लिए,
जाते लम्हों में कहाँ, विश्वास मेरा!

गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

मिल कर, चह-चहाते थे ये लब,
रुकते थे, ये कब,
आज, भूल बैठे हैं ये सब,
बेकरारी का, ये सबब,
ये तन्हाई, ले न ले ये जान मेरा!

गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

न जाने, फिर, वो सहर कब हो!
वो शहर, कब हो!
छाँव वाली, पहर कब हो!
मेरे सपनों का वो घर,
यूँ ही न उजड़े, ये अरमान मेरा!

बड़ा ही, खुशमिजाज शहर था मेरा,
पर बड़ा ही खामोश, 
गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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# कोरोना

8 comments:

  1. मिल कर, चह-चहाते थे ये लब,
    रुकते थे, ये कब,
    आज, भूल बैठे हैं ये सब,
    बेकरारी का, ये सबब,
    ये तन्हाई, जान ले ले ना ये मेरा!

    गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

    न जाने, फिर, वो सहर कब हो...दिल को छूती हुई रचना

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  2. हृदयस्पर्शी।
    जल्द ही सब ठीक होगा। खत्म होगी खामोशी, गुमशुम से घर में फिर से चहल पहल होगी। माना रात है पर इसके बाद ही तो सुबह होनी है।

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  3. घर घर का यही हाल ।।सार्थक रचना ।

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    1. शुक्रिया आदरणीया संगीता स्वरुप जी

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  4. भावों की भाव भरी अभिव्यक्ति,जल्द ही अंधेरा छंटेगा और भोर होगी । आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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    1. जी ऐसा ही हो।
      बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया जिज्ञासा जी।

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