एकाकी, मैं कब था!
कुछ यादें थी,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
अनवरत, चला वक्त का रथ,
रूठ चले कितने, अपने, छूट चले कितने,
उनकी ही, मीठी यादों के पल,
उभर आए, बन कर संबल,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
बन बिखरे, आँखों के मोती,
बिन मौसम, इक बारिश, यूँ रही भिगोती,
भींगे से हम, भीगे यादों के क्षण,
हर क्षण, बरसा वो सावन,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
रिक्तताओं के मध्य, मरुवन,
व्यस्तताओं के मध्य, पुकारता वो दामन,
समेटता, गहराता वो आलिंगन,
हर पल, आबद्ध रहा मन,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
एकाकी, मैं कब था!
कुछ यादें थी,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
जय मां हाटेशवरी.......
ReplyDeleteआपने लिखा....
हमने पढ़ा......
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
दिनांक 25/05/2021 को.....
पांच लिंकों का आनंद पर.....
लिंक की जा रही है......
आप भी इस चर्चा में......
सादर आमंतरित है.....
धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24 -5-21) को "अब दया करो प्रभु सृष्टि पर" (चर्चा अंक 4076) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteअनवरत, चला वक्त का रथ,
ReplyDeleteरूठ चले कितने, अपने, छूट चले कितने,
उनकी ही, मीठी यादों के पल,
उभर आए, बन कर संबल,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था... क्या खूब लिखा आपने
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteएकाकी, मैं कब था!
ReplyDeleteकुछ यादें थी,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
गहरी रचना।
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी ,क्या बात है !एकाकी मैं कब था ,
ReplyDeleteकुछ यादें थी ,यूँ मैं था .......बेहतरीन !
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteएकाकी, मैं कब था!
ReplyDeleteकुछ यादें थी,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था! सच मे ऐसी सोच वाले व्यक्ति एकाकी हो ही नहीं सकता। बहुत सुंदर रचना, पुरुषोत्तम भाई।
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteबन बिखरे, आँखों के मोती,
ReplyDeleteबिन मौसम, इक बारिश, यूँ रही भिगोती,
भींगे से हम, भीगे यादों के क्षण,
हर क्षण, बरसा वो सावन,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!..खूबसूरत एहसासों का सृजन ।
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteएकाकी, मैं कब था!
ReplyDeleteकुछ यादें थी,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
सही कहा एकाकी तो रब ने किसी को नहीं छोड़ा हैं हमेशा वही हमारे साथ है...
बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण सृजन।
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteयूँ, मैं था,
ReplyDeleteज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
आत्मा सो परमात्मा!!!!
खुद से बड़ा खुद का कोई सम्बल कहां!!
गहन अनुभूतियों से सजी रचना है 👌👌👌🙏💐💐
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteवाह! बहुत सुंदर पुरुषोत्तम जी !
ReplyDeleteहर बार की तरह सुंदर सरस भाव सृजन।
बहुत-बहुत धन्यवाद
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