मचल कर, मखमली सवालों में!
वो अक्सर, आ ही जाते हैं, ख्यालों में!
न बदली, अब तक, उनकी शोखियां,
वो ही रंग, अब भी, वो ही खुश्बू,
और वही, नादानियां,
वो अक्सर, कर ही जाते हैं ख्यालों में!
पर, ठहरती है, कब वो, चंचल पवन,
गुजर से जाते हैं, पल वो आकर,
जरा सा, गुदगुदा कर,
अक्सर, भरमा ही जाते हैं, ख्यालों में!
बज ही उठती हैं, ये टूटी सी, वीणा,
थिरक से, उठते हैं, ये तार-तार,
इक पल, गुनगुना कर,
वो अक्सर, बस ही जाते हैं ख्यालों में!
दोष, उन उफनती , लहरों का क्या,
बे-सहारे, किनारों के, वो सहारे,
टकराकर, किनारों से,
अक्सर, भीगो ही जाते हैं, ख्यालों में!
मचल कर, मखमली सवालों में!
वो अक्सर, आ ही जाते हैं, ख्यालों में!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 30 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteअतिसुंदर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत ख़ूब !
ReplyDeleteउनका बे-हिचक, बे-रोकटोक दिल में चले आना और फिर अपनी मर्ज़ी से बिना बताए चले भी जाना !
और हम हैं कि बस, रात-दिन उन्हीं का ख़याल, उन्हीं का तसव्वुर !
शुक्रिया
Deleteमचल कर, मखमली सवालों में!
ReplyDeleteवो अक्सर, आ ही जाते हैं, ख्यालों में
बेहद सुंदर रचना
शुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2021) को चर्चा मंच "जैसी दृष्टि होगी यह जगत वैसा ही दिखेगा" (चर्चा अंक-4204) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया
Deleteबहुत खूब पुरुषोत्तम जी। प्रियतम की यादों को बड़ी ही आत्मीयता से पिरोती रचना बहुत भावपूर्ण है। सादगी भरी अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏
ReplyDeleteशुक्रिया
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