दोनों बेचारा!
यूं, दोनों ही एकाकी,
ना संगी, ना कोई साकी,
भूला जग सारा,
इधर मैं और उधर इक तारा,
दोनों बेचारा!
छूटे, दिवस के सहारे,
थक-कर, डूबे सारे सितारे,
कितना बेसहारा,
इधर मैं और उधर इक तारा,
दोनों बेचारा!
धीमी, साँसों के वलय,
उमरते, जज़्बातों के प्रलय,
तमस का मारा,
इधर मैं और उधर इक तारा,
दोनों बेचारा!
ठहरा, बेवश किनारा,
गतिशील, समय की धारा,
ज्यूं, हरपल हारा,
इधर मैं और उधर इक तारा,
दोनों बेचारा!
दोनों ही पाले भरम,
झूठे, कितने थे वो वहम,
टूट कर बिखरा,
इधर मैं और उधर इक तारा,
दोनों बेचारा!
दोनों, मन के विहग,
बैठे, जागे अलग-अलग,
सोया जग सारा,
इधर मैं और उधर इक तारा,
दोनों बेचारा!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
दोनों ही पाले भरम,
ReplyDeleteझूठे, कितने थे वो वहम,
टूट कर बिखरा,
इधर मैं और उधर इक तारा,
दोनों बेचारा!बहुत सुंदर
हार्दिक आभार ....
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (01 -11-2021 ) को 'कभी तो लगेगी लाटरी तेरी भी' ( चर्चा अंक 4234 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक आभार ....
Deleteयूं, दोनों ही एकाकी,
ReplyDeleteना संगी, ना कोई साकी,
भूला जग सारा,
इधर मैं और उधर इक तारा,
दोनों बेचारा!','',,,,,,, बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण
हार्दिक आभार ....
Deleteवाह बहुत खूब। सुंदर लेखन
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
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