दिलों को भेद जाएंगे, ये अनकहे तेरे,
कुछ कहो ना!
हो शिकायत, तो, खुल के कहो,
ना बंध कर रहो, प्रवाह बन कर बहो,
घुट-कर, ना चुप-चुप जियो,
विचलित करे, ये तेरी अन्त:घुटन,
भीगे, अन्त:करण तक ये मेरे,
चुप रहो ना!
दिलों को भेद जाएंगे, ये अनकहे तेरे,
कुछ कहो ना!
अन्तर्मन, पढ़ न पाया मैं तेरा,
रहा अनभिज्ञ मैं, तेरे मन गढ़ा क्या,
मन ही तेरा, ना जीत पाया,
मैं, जीतकर भी, हारा दोनों जहां,
लगे हैं डगमगाने, विश्वास मेरे,
थाम लो ना!
दिलों को भेद जाएंगे, ये अनकहे तेरे,
कुछ कहो ना!
चले थे परस्पर, इक राह पर,
विश्वास की ही, डोरी इक थामकर,
है अब भी अधूरा ये सफर,
रख दो, अन्त:करण ये खोलकर,
तोड़ दो, मन के भरम ये मेरे,
हाथ दो ना!
दिलों को भेद जाएंगे, ये अनकहे तेरे,
कुछ कहो ना!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार ....
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअपनों से शिक़वे-शिकायत करने से तो अपनापन बढ़ता ही है न कि कम होता है.
हार्दिक आभार ....
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteवाह! शानदार।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
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