जाने, ज़िन्दगी की, कब शाम हो जाए,
चलो ना, इक जाम हो जाए!
छलकने लगी हैं, किरणें सुबह की, नदी पर,
हँसने लगी, कुछ सजने लगी, जिन्दगी,
बादलों की ओट से, कुछ कहने लगी रौशनी,
सो चुका, अब अंधेरा,
छँट चला, निराशाओं का वो पहर,
दोपहर की धूप तक, बातें तमाम हो जाए,
चलो, इक जाम हो जाए!
सुन जरा, कलकल बहती नदी ने क्या कहा,
बहती रही मैं, उन अंधेरों के मध्य भी,
मचलकर, गाती रही, राह के ठोकरों संग भी,
निरन्तर, प्रवाह मेरा,
ले ही आया, आशाओं का शहर,
पहले, उन पर्वतों को इक सलाम हो जाए,
चलो, इक जाम हो जाए!
सुख-दुख तो हैं, दो किनारे इस ज़िन्दगी के,
बेफिकर, बस गीत गा तू बन्दगी के,
दोनों तरफ, छोड़ जाती इक निशानी जिंदगी,
रख कर, इक सवेरा,
देकर, उम्मीदों का ये नव-सफर,
कहती, फिर, सुहानी इक शाम हो जाए,
चलो, इक जाम हो जाए!
जाने, ज़िन्दगी की, कब शाम हो जाए,
चलो ना, इक जाम हो जाए!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सुख-दुख तो हैं, दो किनारे इस ज़िन्दगी के,
ReplyDeleteबेफिकर, बस गीत गा तू बन्दगी के,
दोनों तरफ, छोड़ जाती इक निशानी जिंदगी,
रख कर, इक सवेरा,
देकर, उम्मीदों का ये नव-सफर,
कहती, फिर, सुहानी इक शाम हो जाए,
चलो, इक जाम हो जाए....बहुत ही प्यारी रचना
उन पर्वतों को एक सलाम हो जाएं... अद्भुत सर्जन
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 12 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबहुत खूब, अनुपम अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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