Monday, 10 January 2022

इक जाम

जाने, ज़िन्दगी की, कब शाम हो जाए,
चलो ना, इक जाम हो जाए!

छलकने लगी हैं, किरणें सुबह की, नदी पर,
हँसने लगी, कुछ सजने लगी, जिन्दगी,
बादलों की ओट से, कुछ कहने लगी रौशनी,
सो चुका, अब अंधेरा,
छँट चला, निराशाओं का वो पहर,
दोपहर की धूप तक, बातें तमाम हो जाए,
चलो, इक जाम हो जाए!

सुन जरा, कलकल बहती नदी ने क्या कहा,
बहती रही मैं, उन अंधेरों के मध्य भी,
मचलकर, गाती रही, राह के ठोकरों संग भी,
निरन्तर, प्रवाह मेरा,
ले ही आया, आशाओं का शहर,
पहले, उन पर्वतों को इक सलाम हो जाए,
चलो, इक जाम हो जाए!

सुख-दुख तो हैं, दो किनारे इस ज़िन्दगी के,
बेफिकर, बस गीत गा तू बन्दगी के,
दोनों तरफ, छोड़ जाती इक निशानी जिंदगी,
रख कर, इक सवेरा,
देकर, उम्मीदों का ये नव-सफर,
कहती, फिर, सुहानी इक शाम हो जाए,
चलो, इक जाम हो जाए!

जाने, ज़िन्दगी की, कब शाम हो जाए,
चलो ना, इक जाम हो जाए!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

11 comments:

  1. सुख-दुख तो हैं, दो किनारे इस ज़िन्दगी के,
    बेफिकर, बस गीत गा तू बन्दगी के,
    दोनों तरफ, छोड़ जाती इक निशानी जिंदगी,
    रख कर, इक सवेरा,
    देकर, उम्मीदों का ये नव-सफर,
    कहती, फिर, सुहानी इक शाम हो जाए,
    चलो, इक जाम हो जाए....बहुत ही प्यारी रचना

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  2. उन पर्वतों को एक सलाम हो जाएं... अद्भुत सर्जन

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 12 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

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  4. बहुत खूब, अनुपम अभिव्यक्ति

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  5. बहुत सुंदर सृजन ।

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  6. बहुत सुंदर रचना।

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