बहा ले जाएगी, ये सफर, जाने किधर!
रोके रुकता कहां, ये भंवर!
इक धार है, इस पर कहां एतबार है,
रख दे, जाने कब डुबोकर,
ये कश्ती, किनारों पर!
बहा ले जाएगी, ये सफर, जाने किधर!
मोह ले, अगर, राह के मंजर,
मन ये, धीर कैसे धरे, पीर कैसे सहे!
जगाए, दो नैन ये रात भर,
और, सताए उम्र भर!
बहा ले जाएगी, ये सफर, जाने किधर!
देखूं राह वो, कैसे पलट कर!
तोड़ आया था जहां, स्नेह के बंधन,
पर, नेह कोई, बांधे परस्पर,
यूं खींच, ले जाए उधर!
बहा ले जाएगी, ये सफर, जाने किधर!
जाने, वो पंथ, कितना प्रखर!
आगे धार में, पल रहे कितने भंवर!
या, इक आशाओं का शहर!
यूं बांहें पसारे, हो उधर!
बहा ले जाएगी, ये सफर, जाने किधर!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
" आगे धार में, पल रहे कितने भंवर! " ... वाह! बहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय विश्व मोहन जी।।।।
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