रंग कई थे, बस चुनना था!
उभरे थे, पटल पर, अनगिन परिदृश्य,
छुपा उनमें ही, इक, बिंबित भविष्य,
कोई इक राह, पहुंचाती होगी साहिल तक,
राह वही, इक चुनना था,
दूर तलक, बस, उन पर चलना था!
रंग कई थे, बस चुनना था!
पंख लिए, उड़ा ले जाते, ख्वाब कहीं,
मन को, पथ से भटकाते चाह कई,
कहीं दूर, बहा ले जाते, दुविधाओं के पल,
हासिल जो, चुनना था,
चाहत के रंग, उनमें ही, भरना था!
रंग कई थे, बस चुनना था!
उलझन, उलझाएगी, हर चौराहों पर,
जीवन, ले ही जाएगी दो राहों पर,
हर सांझ, पटल पर छाएंगे रंगी परिदृश्य,
लक्षित, पथ चुनना था,
उलझे भ्रम के जालों से बचना था!
रंग कई थे, बस चुनना था!
अशांत मन, होता है यूं ही शांत कहां,
बेवजह उलझन का, यूं अंत कहां,
सपन अनोखे, भर लाएंगे दो चंचल नैन,
चैन खुद ही चुनना था,
चुनकर ख्वाब वही इक बुनना था!
रंग कई थे, बस चुनना था!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
पंख लिए, उड़ा ले जाते, ख्वाब कहीं,
ReplyDeleteमन को, पथ से भटकाते चाह कई,
कहीं दूर, बहा ले जाते, दुविधाओं के पल,
हासिल जो, चुनना था,
चाहत के रंग, उनमें ही, भरना था!.... बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-07-2022) को चर्चा मंच "तृषित धरणी रो रही" (चर्चा अंक 4499) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteसुन्दर हठ
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteलक्षित, पथ चुनना था,
ReplyDeleteउलझे भ्रम के जालों से बचना था!
रंग कई थे, बस चुनना था!
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं भावपूर्ण सृजन ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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