किनारों से, गुजर रही है ये उमर!
बहाव सारे, बन गए किनारे,
ठहराव में हमारे,
रुक गया, ये कहकशां,
बनकर रह-गुजर!
उनको छू कर,
किनारों से, गुजर रही है ये उमर!
रश्क करता, मुझ पे दर्पण,
भर के आलिंगन,
निहारकर, पल दो पल,
यूं जाता है ठहर!
उनको छू कर,
किनारों से, गुजर रही है ये उमर!
जज्बात में, इक साथ वो,
अनकही बात वो,
लिख दूं, कैसे, सार वो,
यूं ही कागजों पर!
उनको छू कर,
किनारों से, गुजर रही है ये उमर!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
At Kolkata....