इधर ही, उस राह का इक छोर है,
लिए जाए किधर, ये मोड़ है!
छोड़ आए, उधर ही, कितनी गलियां,
कितने सपने, छूटे उधर,
मन के मनके, टूटकर, बिखरे राह में,
अब, लौट भी न, पाएं उधर,
छूटा जिधर, वो डोर है!
लिए जाए किधर, ये मोड़ है!
शक्ल अंजान कितने, इस छोर पर,
हैं हादसे, हर मोड़ पर,
सिमटता हर आदमी अपने आप में,
डस रही, अपनी परछाइयां,
विरान कैसा, ये छोर है!
लिए जाए किधर, ये मोड़ है!
धूल-धुसरित हो चले, ये पांव सारे,
धूमिल से दोनों किनारे,
ढूंढता खुद की ही, पहचान राहों में,
थक कर, चूर-चूर ये बदन,
करे हैरान, यह छोर है!
इधर ही, उस राह का इक छोर है,
लिए जाए किधर, ये मोड़ है!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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