Sunday 29 January 2023

छलकी बदरी


छलकी क्यूं बदरी,
इक बूंद गिरी, या दुःख की जलधि!
समझ सके ना हम!

भीगे सब पात, यूं जागी रात,
हुई सजल, हर बात,
क्या उपवन, क्या मरुवन सा ये आंगन!
नैन भिगोए, क्यूं दुल्हन!
कह ना सके हम!

अंतः थामे बरखा संग बिजली,
गोद लिए, चंचल बदरी,
भर लाते, मन के अन्दर, सागर कितने,
अंसुवन के, गागर कितने,
कह ना सके हम!

फैलाए, अंधियारा इक दामन,
गहराते, वो काले घन,
घबराते, या, छम-छम गीत कोई गाते,
व्याकुल, बदरा ही जाने,
कह ना सके हम!

छलकी क्यूं बदरी,
इक बूंद गिरी, या दुःख की जलधि!
समझ सके ना हम!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 1फरवरी 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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