वश में कहां, जो सांझ होते ही, लौट आते!
गुजरा, वो इक सदी हूँ,
जो, सूख चली, वो इक नदी हूँ,
कल के, किसी छोड़ पर,
फिर मिल ना सकूं, गर, किसी मोड़ पर,
न होना परेशां!
सोच लेना,
खामोश हो चली, वो सदाएं,
गुजर चला, वो कारवां,
रुक चली, रवानियां!
वश में कहां, जो सांझ होते ही, लौट आते!
धीर, मन पे रखना,
तीर उस नदी के, चुप ही रहना,
बीते, वो वक्त के सरमाए,
न होगा कोई वहां, सुने जो तेरी सदाएं,
वो खुद बेनिशां!
जान लेना,
फिर ना भीगेगा, ये किनारा,
दूर बह चली, वो धारा,
गुजर चली, बतियां!
वश में कहां, जो सांझ होते ही, लौट आते!
वक्त ही छीन लेता,
वो तन्हाई, फुर्सत के वो लम्हाते,
कम्पित, जीवन के पल,
वो सांसें, वो सौगातें, वक्त ही जो देता,
खुद, बे-आशियां!
मान लेना,
उजारा, उसने ही आशियां,
लूटी, उसने ही दुनियां,
रुक चला, कारवां!
वश में कहां, जो सांझ होते ही, लौट आते!
It looks like you have a magical pen at home. wonderful poetry sir🙏
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