Sunday, 27 October 2024

वो

वो हैं मंजिल, वो हैं शामिल रास्तों में,
पर ढूंढ़ती, उनको ही नजर,
धूप की, तिलमिल, करवटों में,
रंगी सांझ की, झिलमिल सी आहटों में,
वक्त की, धूमिल सी सिलवटों में,
घुल चले जो कहीं!

क्षितिज के उतरते, सीढ़ियों पर,
पसरते, दिन तले,
बिखरते हैं जब, ख्यालों के उजले सवेरे,
नर्म, एहसासों को समेटे,
ढूंढ़ता हूं मैं,
ओस की, उन सूखती बूंदोंं को,
उड़ चले जो, कहीं!

गहराते, रात के, ये घनेरे दामन,
सिमटता सा, पल,
पंख फैलाए, विस्तृत खुला सा आंगन,
देता रहा, कोई निमंत्रण,
पर वो किधर,
ढूंढ़ती, हर ओर उनको नजर,
छुप चले जो कहीं!

वो हैं मंजिल, वो हैं शामिल रास्तों में,
हर फिक्र में, वो हैं शामिल,
जिक्र, दिल की हर धड़कनों में,
बनकर एक खुश्बू, बह रहे, गुलशनों में,
बंद पलकों की, इन चिलमनों में,
बस चले जो कहीं!

Monday, 21 October 2024

दो पल


बहला गया, पल कोई, दो पल,
कुछ समझा गया, 
मन को!

वो सपना, बस इक सपन सलोना,
पर लगता, वो जागा सा!
बंधा, इक धागा सा,
संजो लेना,
अधीर ना होना, ना खोना,
मन को!

बहला गया, पल कोई, दो पल,
कुछ समझा गया, 
मन को!

पर जागे से ये पल, जागे उच्छ्वास,
जागी, उनींदी सी ये पलकें,
सोए, कैसे एहसास?
पिरोए रखना,
धीरज के, उन धागों ‌से,
मन को!

बहला गया, पल कोई, दो पल,
कुछ समझा गया, 
मन को!

Saturday, 12 October 2024

याद इन दिनों


बहुत याद आए, तुम, इन दिनों!
गुम गीत सारे, इन दिनों ...

सूखे से, पात सारे,
सहमे से, जज्बात सारे,
जलते ये, दिन,
बुझे से ये रात, इन दिनों ....

बहुत याद आए, तुम, इन दिनों!

बरस रहे, दो नैन,
मौन, तरस रहे दिन-रैन,
न कोई, बादल,
भीगे हैं आंचल, इन दिनों ....

बहुत याद आए, तुम, इन दिनों!

हर ओर, बिंब तेरी,
हर तरफ, प्रतिबिंब तेरी,
फैलाती, वो बांहें,
पुकारती हैं राहें, इन दिनों ....

बहुत याद आए, तुम, इन दिनों!

बीता, वो पल कहां!
ठहरते, इक क्षण कहां!
तैरते, वो निशां,
टूटे वो बुलबुले, इन दिनों ....

बहुत याद आए, तुम, इन दिनों!
गुम गीत सारे, इन दिनों ...