Sunday, 10 August 2025

छल

क्षण भर जो भाया, उस क्षण ही मन जी पाया,
पाने को तो, जीवन भर कितना पाया,
शेष क्षण, बस सूना ही पाया!

गुंजन, कंपन, सिहरन, तड़पन भरा वो आंगन,
सुने क्षण में, विरह भरा वो आलिंगन, 
कितना कुछ, मन भर लाया!

ये दामन, कितना भरा-भरा, हर ओर हरा-हरा,
नैनों में, अब भी, सावन सा नीर भरा,
शायद, वो ही क्षण गहराया!

जो छलता ना वो क्षण, यूं पिघलता ना ये क्षण,
न जलता ये मन, न होता धुआं-धुआं,
न होता, एकाकी इक छाया!

आकुल ही रहा, व्याकुल भटकता ये आकाश,
लिए हल पल, अबुझ बूंदों की प्यास,
वहीं, क्षितिज पर उतर आया!

क्षण वो ही इक भाया, उस क्षण ने ही तड़पाया,
रंग, उस क्षितिज का, जब भी गहराया,
नैनों में, वो क्षण उभर आया!

क्षण भर जो भाया, उस क्षण ही मन जी पाया,
पाने को तो, जीवन भर कितना पाया,
शेष क्षण, बस सूना ही पाया!

Monday, 4 August 2025

मां

कौन सा वो जहां, वो कौन सी क्षितिज,
खोई मां कहां?

जली, इक चिता,
उस रोज, भस्मीभूत हुई थी वो काया,
उठ चला,
मां का, सरमाया!

पर, बिंबित वही,
नैनों में अंकित, करुणामय रूप वही,
पास सदा,
उसका ही, साया!

शेष, बचे वे स्पर्श,
सारे संदर्भ, सारे सारगर्भित आदर्श,
प्राण अंश,
देती, इक छाया!

पर वे शब्द कहां,
नि:स्तब्ध करते, निश्छल वे नैन कहां,
लुप्त हुआ,
जो भी था पाया!

एकाकी, थी वो,
झेले पति-प्रलाप, सहे दंश सदियों,
वही दुख,
बांट, न पाया!

ले भी ना सका,
ममता के, सुखमय अंतिम वे क्षण,
न सानिध्य,
ही, निभा पाया!

वक्त ही, रूठा,
छांव मेरा, वक्त ने ही, मुझसे लूटा,
सोचूं बैठा,
मंदिर, क्यूं टूटा!

दो पल ही सही, 
ले चल मुझे ओ गगन,ओ क्षितिज,
देखूं जरा,
है कैसी मां वहां!

कौन सा वो जहां, वो कौन सी क्षितिज,
खोई मां कहां?

Sunday, 3 August 2025

जीवन-शंख

गूंज उठी, कहीं इक शंख,
बिखेर गई, हवाओं में अनगिनत तरंग,
उठा, मृत-मन में,  उन्माद सा,
जागी, तन में, इक सिहरन,
जागे, मृत-प्राण,
इक, नव-जीवन का उन्वान!

जीवन, ज्यूं विहीन पंख,
हर ओर धुआं, विलीन राहें, मन-मलंग,
इक गुंजन का, विस्तार उठा,
पंख लिए, ये प्राण उठा,
इक, नव-विहान,
महकी पवन, चहका प्राण!

मृत सी, लगती वो शंख,
पर सिमेटे, विस्तृत, विविध, रंग-उमंग,
अन्तस्थ, अनंत जीवन-शय,
अन्तः, गाता इक हृदय,
जागा, इक प्राण,
सोए, हर मन का विहान!

कुछ हम गूंजे, शंख सा,
तुम दो, खाली पन्नों को, इक रंग सा,
भर दो, वादी में इक लय,
सुने क्षण में इक सुर,
वाणी में, तान,
नव-आशा का, उत्थान!