कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 20 February 2016

मैं एक अनछुआ शब्द

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मैं अनछुआ शब्द हूँ एक! किताबों में बन्द पड़ा सदियों से, पलटे नही गए हैं पन्ने जिस किताब के, कितने ही बातें अंकुरित इस एक शब्द में, एह...
3 comments:
Wednesday, 17 February 2016

अनबुझी प्यास

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अंकुरित अभिलाषा पलते एहसास, अनुत्तिरत अनुभूतियाँ ये कैसी प्यास? अन्तर्द्वन्द अन्तर्मन अंतहीन विश्वास, क्षणभंगूर निमंत्रण क्षणि...
Monday, 8 February 2016

जीवन ही जीवन

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जीवन ही जीवन होता अंकुरित यहाँ, हर ओर बिखरा यूँ रूप-सौन्दर्य यहाँ, कहीं स्वर धारा विविध तरंग भरती, कही मौन पृथ्वी रस सुधा बरसाती। ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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