कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 5 June 2021

मुझे क्या!

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मुझे क्या! भूला सा, हूँ मैं इक पल, या, इक छल, जैसे, ठोस लगे कोई जल! खोया हूँ, तेरी ही विस्मृति के, आंगण में, बंधा हूँ, नभ के भीगे से, उस घन ...
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Wednesday, 8 April 2020

बुनता हूँ परछाईं

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बदली सी, है छाई, चलता-रुकता हूँ, कोशिश करता हूँ! बुन लूँ, परछाईं! थोड़े से हैं बादल, शायद, छँट जाएंगे, रुकते-चलते, इस भ्रम में, परछ...
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Thursday, 23 January 2020

दर्पण मेरा

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अब नहीं पहचानता, मुझको ये दर्पण मेरा! मेरा ही आईना, अब रहा ना मेरा! पहले, कभी! उभरती थी, एक अक्स, दुबला, साँवला सा, करता था,...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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